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तीर्थ माला संग्रह
१०६ सिद्धारथ घरि गिरि सिरिइं, तिहां वांदु एक बिंब हो वीरजी। त्रिहुं कोसे ब्रह्मकुड' छि, वीरह मूल कुटुंब हो वीरजी खां. ॥१८॥ पूजी अ गिरि थकी ऊतर्या, गांमि कुंडरी जान हो वीरजी। प्रथम परीसही उतरि, वांद्या वीरना पाय हो वीरजी खा. ॥६६॥ सुविधि जनम भूमी वांदीइ, कांकंदी कोस सात हो वीरजी। कोस छवीस विहार थी, पूरव दिसि दोय सात हो वी. खां. ॥१००॥ पटणा थी दिशि पूरवइ, सठि कोसे पुरिचंपा हो वी. । कल्याणक वासु पूज्य नां, पांच नमी जी आप हो वी. खां. ॥१०१।। दिवानउ इक देवसी, कीधी तेणि उपाधि हो वी. । श्वेतांबर थिति ऊथपी, थापी विक्यट व्याधि हो वी. खां. ॥१०२॥ पणपरपुत्रे सपुत्र को, न हुप्रो एह संभाल हो वी. । जे नर तीरथ ऊथपीइ, तेहनइ मोटी गालि हो वी. खां ॥१०३॥ चांप वराडी जिण कही, गंग वहइ तस हेठि हो वो. । सतीअ सुभद्रा इहां हुई, हुप्रो सुदर्शन सेठि हो वी. खां. ॥१०४।। हाजीपुर उत्तर दिशि, कोस वडी च्यालीस हो वीरजी। मिहिला मल्लि नमीसरु, जनम्या दोयज गदीस हो वी. खां. ॥१०॥ प्रभु पग आगि लोटी गणां, लीधां सीधां छि काम हो वी.। लोकि कहिए सुलक्खणी, सीता पीहर ठाम हो वी. खां ॥१०६॥ पट्टणा थी दक्षिण गया, मारगि कोस पंचास हो वी.। शीतल जनम महो लही, भद्दिलपुरि भरि पास हो वी. खां. ॥१०७॥ सुलसा सुणिनि संदेसडउ, कहि अंबड जिनवांणि हो वी. । कहांन सहोदर इणिपुरी, चंदेला सिहि नारिण हो वी. खां, ॥१०८।। ढाल मधुकर धन्यासीमधुकर मोह्यामाल, परिमल बहुल उजास ॥मधुकर।। मुज मन मोह्यउं इणि गिरि, जांगू कीजि वास । मधुकर।।१०६॥
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