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तीर्थ माला संग्रह
कठहल वडहल फलवडां, चारोलीन बेदामो जी। हरडइ पीपरि पीपला मूल, फणस फल नामो जी ।।६२।। श्री. ॥ गज टोलां दोलां वने, चरइ गेंडांसा वजराजो जी। जरखां अजगर गरजतां, बारह सीग अगाजो जी ॥६३॥ श्री. ।। कोइ न उलखि उषधी, जल थल रूष विशेषो जी। जंगलि जोइयां ते जेहनउ, लिख्यो न जाइ लेखो जी ॥६४॥ श्री. ।।
दोहा:
दीठउ डूंगर दूरि थी, अटवी अटक उलंघि । पालगंज गिरि तलहटी, पांमो कुसलई संघि ।।६५।। संघपति भूपति भेटियो, भरि भेटण पाय नमी।
करो वंदन जिनराजनी नमीये सिरनामी ॥६६॥ ढाल सोरठी लिनओ:-- तब भूपति बोलइ भल्ल, नामि जे पृथिवीमल्ल । अब जीवित सफल अम्हारु, जउ दरिसण दीठ तुम्हारु ॥६७।। हमचउ तुम्हें महुत वधारु । गिरि ऊपरि तुम्हें पधारु । सीधा जसत्य सिरि जिन वीस । करि यात्र नइं नांमउं सीस॥६८।। आदेश लही नरपतिनउ । सवि संघ चडइं स यतनउ । तब हुउ अचरिज एह । विण वादल वूठउ मेह ।।६।। फागुण सुदि सुरगुरु वारि । पंचमि दिन देवजुहारि । करि तीरथ तप उपवास, गावइ गुण गोरी जन भास ॥७०।। नर नारी पहिरी अोढी, पूजइ प्रतिमा प्रभु पोढी । फरिसइ वली वीसि टुक, टाली मल मूत्र नि थूक ।।७१॥ श्री अजित संभव अभिनंदन, श्री सुमति पद्मप्रभ वंदन । सुपास चन्द्रप्रभ सुविधि शीतल श्रेयांस विमल ।। श्री अन्नत नइ धर्मह शांति, कुंथु पर मल्लि नमिए कांति । मुनि सुव्रत श्री नेमि पास । इहां कीधउ कर्म विणास ।।७२।।
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