________________
परिशिष्ट (ज)
४०३
-
परिशिष्ट (ज)
अकबरके समयके सिके।
जीवनोपयोगी वस्तुओंके व्यवहारके लिए प्रत्येक कालमें और प्रत्येक देशमें ' सिक्कों ' का व्यवहार अवश्यमेव होता है । ये सिक्के दो प्रकारके होते हैं। एक मुहरवाले और दूसरे विना मुहरके । जो सिके मुहरवाले होते हैं उनपर उस समयके राजाका चित्र,राज्यचिह्न, अथवा राजाका नाम और संवत ढाले हुए रहते हैं। और जो सिक्के बगेर मुहरके होते हैं उनका व्यवहार गिनतीसे होता है । जैसे,-बादाम कोडियाँ आदि । जो सिके मुहरवाले होते हैं उनके विशेष नाम होते हैं । जैसे,-वर्तमानमें सोनेके सिक्केको गिन्नी, चाँदीके सिक्के को रुपया और ताँबेके सिक्केको पैसा कहते हैं । इतिहासोंसे मालूम होता है कि, प्रायः इन्हीं तीन धातुओंके सिक्के हर समय व्यवहारमें आये हैं। प्राचीन समयमें शीशा (रांगा) और अन्यान्य धातुओंके सिक्के भी काममें आते थे; परन्तु गत तीन चारसौ बरसोमें तो विशेषकरके इन-सोना, चाँदी और पीतल-तीन धातुओंके ही सिके व्यवहार में आये हैं । हाँ, वजनकी कमी ज्यादतीके कारण उनके नाम जुदा जुदा रक्खे गये हैं, परन्तु धातु तो ये तीन ही हैं।
जिस समयके सिक्कोंका वर्णन मैं करना चाहता हूँ उस समयके ( अकबरके वक्तके ) सिक्कोंमें भी ये ही तीन धातुएं काममें आइ हैं। और वे भी खरी-बगेर मिलावटकी । ___अकबरके समयमें जो सिक्के चलते थे वे अनेक तरहके थे। अर्थात् व्यवहारकी सरलताके लिए अकबरने अपने समयके सिके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org