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________________ ४०१ परिशिष्ट (छ) " वह व्रती ' नामसे पहचाने जानेवाले मनुष्योंका कट्टर शत्रु है । मैं उन व्रतियोंसे संबंध रखनेवाली कुछ बातें यहाँ लिलूँगा। " व्रती, साधुओंकी तरह समुदायमें रहते हैं । मैं जब उनके स्थान ( खंभातमें ) पर गया, तब उनमेंके लगभग पचास वहाँ थे। वे अमुक प्रकारके सफेद कपड़े पहनते हैं, शिरपर कुछ नहीं रखते; उस्तरेसे डाढ़ी नहीं कराते; मगर वे डाढ़ीके बाल खींच लेते हैं अर्थात् डाढ़ीके और शिरके बालोंका वे लोच करते हैं। सिरके ऊपर बीचके भागमें ही थोड़ेसे बाल होते हैं। इससे उनके सिरमें बडीसी टाल (Bald) हो जाती है। "वे निग्रंथ हैं । जो खाद्य पदार्थ गृहस्थों के यहाँ आवश्यकताके उपरांत बढ़ा हुवा होता है वही वे भिक्षामें लेते हैं। उनके स्त्रिया नहीं होतीं । गुजराती भाषामें उनकी धर्मशिक्षाएँ लिखी रहती हैं। वे गर्म पानी पीते हैं। मगर सर्दी लगनेके भयसे नहीं बल्के इस हेतुसे कि पानीमें जीव होते हैं, इसलिए उबाले बगेर पानी पीनेसे उन जीवोंका नाश होता है । इन जीवों को ईश्वरने बनाया है। और इसमें ( उबाले बिना पानी पीनेमें ) बहुत पाप है। मगर जब पानी उबाल लिया जाता है तो उसमें जीव नहीं रहते । और इसी हेतुसे वे अपने हाथों में अमुक प्रकारकी पीछियाँ (ओघे) रखते हैं। ये पीछियाँ उनकी डंडियों सहित रूईकी (उनको) बनाई हुई पेन्सिलोंके जैसी लगती हैं। वे इन पींछियों द्वारा (बैठनेकी ) जगह अथवा उन स्थानोंको साफ करते हैं जिन पर उन्हें चलना होता है । कारण, ऐसा करनेसे कोई कोई जीव नहीं मरता । इस व्हेमके हेतु उनके बड़ों और गुरुजनोंको कई बार मैंने ज़मीन साफ़ करते देखा है। उनके सर्वोपरि नायकके अधिकारमें एक लाख मनुष्य होंगे । प्रतिवर्ष इनमेंका एक चुना जाता 61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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