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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। passed away. In this way they say many silly things, which I omit so as not to weary your Reverence." " अकबर बादशाह ईश्वर और सूर्यको पूजता है और वह हिन्दु है। वह व्रती सम्प्रदायके अनुसार आचरण करता है। वे मउवासी साधुओंकी भाँति बस्तीमें रहते हैं और बहुत तपस्या करते हैं। वे कोई सजीव वस्तु नहीं खाते । बैठनेके पहले रूई (उन ) की पीछी ( ओघा ) से जमीनको साफ़ कर लेते हैं ताके ज़मीनपर कोई जीव रहकर उनके बैठनेसे मर न जाय । इन लोगोंकी मान्यता है कि, संसार अनादि है। मगर दूसरे कहते हैं कि,-अनेक संसार हो गये हैं। ऐसी मूर्खतापूर्ण ( ? ) बातें लिखकर आप श्रीमान्को दिक करना नहीं चाहता।" इसी तरह उसने ( पिनहरोने ) ता. ६ नवम्बर सन् १९९५ के दिन अपने देशमें एक पत्र लिखा था। उसमें जैनोंके संबंधमें यह लिखा था, • The Jesuit narrates a conversation with a certain Babansa (? Bāban shāb) a wealthy notable of Cambay, favourable to the Fathers. पेरुशी पृ० ६९ में छपे हुए पत्रके लेटिन अनुवादका यह तर्जुमा है। यही बात मॅकलेगनने 'जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगालके वॉल्युम ४५ के प्रथम अंकके ७० वें पृ० में लिखी ह।। २ व्रती' अन्य कोई नहीं, जैनसाधु ही हैं। उस समयके बहुतसे लेखकोंने जैनसाधुओंके लिए व्रती' शब्द ही लिखा है। डिस्क्रिप्शन ऑफ एशिया' नामक पुस्तक-जो ई. सन् १६७३ में छपा है-के ११५, २१३, १३२ आदि पृष्ठोंमें इस देशके जैन साधुओंका वर्णन दिया है वह प्रती' शब्दहीसे दिया है। और तो और सुप्रसिद्ध गुर्जर कवि शामलदासने भी 'सूडाबहोतेरी' में 'व्रती' शब्दही दिया है । 'वती' शब्दका व्युत्पत्ति-अर्थ होता है,व्रतमस्याऽस्तीति व्रती (जिसको व्रत होता है उसे व्रती कहते हैं।) मगर कल्मेिं 'प्रती' शब्द जैनसाधुओंके लिए ही व्यवहत हुआ है और होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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