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________________ ३८१ सूरीश्वर और सम्राट् । परिशिष्ट (ग) फर्मान नं. ३ का अनुवाद । अल्लाहो अकबर । नकल । (ता. २६, माह फ़र्वरदीन, सन् ५ के करार मुजिबके फर्मानकी) तमाम रक्षित राज्योंके बड़े हाकिमों, बड़े दीवानों, दीवानीके बड़े बड़े काम करनेवालों, राज्यकारोबारका बंदोबस्त करलेवालों, जागीरदारों और करोडियोंको जानना चाहिए कि,-दुनियाको जीतनेके अभिप्रायके साथ हमारी न्यायी इच्छा ईश्वरको खुश करनेमें लगी हुई है और हमारे अभिप्रायका पूरा हेतु तमाम दुनियाको-जिसे ईश्व. रने बनाया है-खुश करनेकी तरफ़ रजू हो रहा है। उसमें भी खास करके पवित्र विचारवालों और मोक्षधर्मवालोंको-जिनका ध्येय सत्यकी शोध और परमेश्वरकी प्राप्ति करना है-प्रसन्न करनेकी ओर हम विशेष ध्यान देते हैं। इसलिए इस समय विवेकहर्ष, ये महान् प्रतापी पुरुष थे। उन्होंने अनेक राजामहाराजाओंको उपदेश देकर उनसे जीवदयाके कार्य कराये थे । कच्छका राजा भारमल तो उनके उपदेशसे जैन ही हो गया था । इस विषयका उल्लेख 'मोटी खाखर' (कच्छ ) के शत्रुजयविहार नामके जैनमंदिरके एक बड़े शिलालेखमें है। यह शिलालेख मुनिराज श्रीहंस विजयजी विरचित 'प्रश्नोत्तर पुष्पमाला' नामक पुस्तकके १५५ - पृष्टमें छपा है। इन विवेकहर्ष' को ' महाजनवंशमुक्तावली' के लेखक, श्रीयुत रामलालजीगणि खरतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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