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________________ परिशिष्ट (क ) ३७७ हो और उनको मानने, चाहने खैरात करनेवालोंमें से कोई उसे सुधारना या उसकी नींव डालना चाहता हो तो उसे कोई बाह्य ज्ञानवाला ( अज्ञानी ) या धर्मांध न रोके । और जिस तरह खुदाको नहीं पहचाननेवाले, बारिश रोकने' और ऐसे ही दूसरे काम को करना - जिनका करना केवल परमात्मा के हाथमें है-भूर्खतासे, जादू समझ, उसका अपराध उन बेचारे खुट्टाको पहचानने वालोंपर लगाते हैं और उन्हें अनेक तरहके दुःख देते हैं । ऐसे काम तुम्हारे साये और बन्दोबस्त में नहीं होने चाहिए; क्योंकि हम नाले और होशियार हो । यह भी सुना गया है कि, हामी वाहने जो हमारी सत्यकी शोष और ईश्वरीय पहचान के लिए थोड़ी रखता है - इस जमातको कष्ट पहुँचाया है। इससे हमारे पवित्र मनको-जो दुनियाका बंदोबस्त करनेवाला है - बहुत ही बुरा लगा है। इसलिए तुम्हें इस बात की पूरी होशियारी रखनी चाहिए कि तुम्हारे शान्तमें कोई किसीपर जुल्म न कर सके | उस तरफ मौजा और भविष्य होनेवाले हाकिम, नवाब या सरकारी छोटासे होटा काम करनेवाले अहलकारों के लिए भी यह नियम है कि, वे राजाकी बाजाको विरकी आज्ञाका रूपान्तर समझें, उसे अपनी हालत सुधारने सीमा और उसके विरुद्ध न चले; राजाज्ञा के अनुसार चलनेहीमें दीन और दुनियाका सुख एवं प्रत्यक्ष सम्मान समझें । यह कुर्मा पदक नकुल रख, उनको दे दिया जाय जिससे सटाके लिए उनके पास रहे; वे अपनी भक्ति की क्रियाएँ करने में चिन्तित न हो और ईश्वरोपासना में उत्साह रक्खें। इसको फर्ज रामदा इसके विरुद्ध कुछ न होने देना । १ देखो पेज ३१, ३२ इसी पुस्तके | २ इसी पुस्तक पृष्ठ १९० - १९४ वे में और 'अकबरनामाके' तीसरे भागके बेवरीज कृत अंग्रेजी अनुवादके ५. २०७ में इसका हाल देखो ! 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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