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सूरीश्वर और सम्राट। देहांत होगया । सम्राट् काश्मीर गया तब राजा टोडरमल भी जो
१५६६ ईस्वीमें गीलान तहमास्पके हाथमें गया तब वहाँका राजा अहम दखाँ कैद किया गया और अब्दुर्रज्जाक मार डाला गया । इससे हकीम अबुल.फतह अपने दो भाइयों (हकीम हुमायुं और हकीम नुरुद्दीन) को साथ ले अपने देशको छोड़ सन् १५७५ में भारत वर्षमें आया । अकबरके दरिमें उसका अच्छा आदर हुआ । राज्यके चोवीसमें वर्षमें अबु. लफतह बंगालका सदर और अमीन बनाया गया था । यद्यपि उसकी पदवी एक हज़ारीकी थी, तथापि उसकी सत्ता वकीलके समान थी । सन् १५८९ ईस्वीमें अकबर जब काश्मीर गया था तब अबुल फतहभी उसके साथ ही गया था। वहाँसे 'जावलिस्तान के लिए रवाना हुआ और रस्तेमें बीमार होकर मर गया । अकबरके हुक्मसे रू बाजा शमशुद्दीन उसकी लाशको 'हसनअब्दाल' ले गया और जो कबर अकबरके लिए वनाई थी उसमें वह गाड़ा गाया । पांछे लौटते अकबरने उस कबर पर जाकर प्रार्थना भी की थी। बदाउनीके कथनानुसार अकबरके इस्लाम धर्म छोडनेमें अबुल्फतहका भी हाथ था । विशेषके लिए देखो-'आईन-इ अकबरी' के पहले भागका अंग्रेजी । अनुवादक पृ० ४२४-४२५ तथा — दबीरे अकबरी' पृ० ६५६-६६६.
१-राजा टोडरमल लाहोरका रहने वाला था । कुछ लेखकोंका मत है कि वह लाहोर जिलेके चूनिया गाँवका रहनेवाला था। एसियाटिक सोसायटाने जो जाँचकी है उसके अनुसार वह लाहरपुर जिला अवधका रहनेवाला था । वह जातिका खत्री और गोत्रका टंडन था । सन् १५७३ ईस्वीके लगभग अकबरके दर्बारमें दाखिल हुआ था । धीरे धीरे अकबरने उसे आगे बढ़ाया और अपने राज्यकालके सत्ताईसवें वरस में उसको बाईस जिलोंका दीवान और वजीर बनाया था । वह जितना हिसावके कामसे प्रसिद्ध हुआ था उतना ही अपने पराक्रमसे भी प्रसिद्ध हुआ था । पक्षपातस वह सदा दूर रहता था । कहा जाता है कि उसने हिसाब गिननकी कूँचियोंकी एक पुस्तक लिखी थी । उसका नाम 'खाजनेइसरार' था । प्रो. आज़ादके कथनानुसार यह पुस्तक काश्मीर और लाहोरके वृद्ध लोगोंमें 'टोडरमल' नामसे प्रसिद्ध है ।
टोडरमल क्रियाकांडमें कट्टर हिन्दु था । वह अपने इष्ट देवको पूजा किये बिना कभी अनजल ग्रहण नहीं करता था । कई बार उसे अपने धार्मिक
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