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सम्राटका शैषजीवन ।
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इस लिए उसके मुँह पर ताले ठोकनेवाले हमारे आधुनिक शासनकर्त्ता क्या अकबर के विचारों से कुछ सबक सीखेंगे ?
अकबर के समस्त कार्योंका साध्यबिंदु एक था, - भारतको गौरावान्वित करना । इस साध्य-बिंदुको ध्यान में रखकर ही उसने अपने शासनकालमें, लुप्त प्रायः कृषि, शिल्प, वाणिज्य आदि विद्याओंका पुनरुद्वार किया था; उन्हें उन्नत बनाया था ।
वह जैसा दयालु था वैसा ही दानी भी था । अकबर जब दर्बारमें बैठता तब एक खजानची बहुतसी मुहरे रुपये लेकर सम्राट्के पास खड़ा रहता था । उस समय यदि कोई दरिद्र आ जाता था तो अकबर उसे दान देता था । वह जब बाहिर फिरने निकलता था उस समय भी उसके साथ क्रय लिए हुए एक आदमी रहता था । रास्ते में यदि कोई गरीब उसको दिखाई दे जाता था या कोई माँगनेवाला उसके सामने आजाता था, तो वह उसे कुछ न कुछ दिये बिना नहीं रहता था । लूले, लंगडों, अंधों या इसी तरहके दूसरे लाचार लोगोंपर अकबर विशेष दया दिखाता था । अकबरने न्यायमें जैसे हिन्दु, मुसलमान या धनी निर्धनका भेद नहीं रक्खा था उसी तरहसे दान देनेमें भी उसने जाति, धर्म, मूर्ख, पंडित आदिका भेद नहीं रक्खा था । अपने राज्य में अनेक स्थलोंपर उसने अनाथालय खोले थे। फतेहपुर सीकरी में दो अनाथाश्रम थे । एक हिन्दुओंके लिए और दूसरा मुसलमानों के लिए । हिन्दुवाले आश्रमका नाम धर्मपुर था और मुसलमानोंवाले आश्रमका नाम खैरपुर ।
कहा जाता हैं कि, अकबर ने कई ऐसी हुनर - उद्योग शालाएँ एवं कारखाने खोले थे जिनमें तोपें, बंदूकें, बारूद, गोले, तरवारें, ढाले
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