________________
सम्राट्का शेषजीवन |
३२१
दाहिनी तरफ बिठानेका मान दिया था | मालदेवने भी अपनी पुत्री जोधाबाई अकबर के साथ व्याह दिया था ।
ई. सन् १९६० के चातुर्मास में अकबरने मालवा जीतने के लिए अधमखाँ के सेनापतित्वमें सेना भेजी थी। इसने मालवा के राजा बाजबहादुरको ई. १५६१ में परास्त किया था । इस लड़ाई में अधमखाँने और पीरमहमम्दने बड़ी ही निर्दवताके साथ स्त्रियों
प्रथम भाग, ब्लॉकमनकृत अंग्रेजी अनुवाद पृ० ३१६) मालदेवका लड़का उदयसिंह मोटाराजा के नामसे प्रसिद्ध है | मालदेव के पास ८०००० घुडसवार थे । यद्यपि राणासांगा-जो फिरदौस मकानी ( वावर ) के साथ लड़ा था -- बडा हो शक्तिशाली था, तथापि सैन्य संख्या में और क्षेत्रविस्तार में मालदेव उससे बढ़कर था । इसीलिए वह विजयी होता था । विशेष के लिए, देखो, आईन-इ-अकबरी. प्रथम भाग, ब्लॉकमैन, अंग्रेजी अनुवाद पृ० ४२९-४३० ।
१- अधमखाँ माहम अंगाका लड़का था । युरोपिअन इतिहासवेत्ता ओंने उसका नाम आदमखाँ लिखा है । उसकी माता माहम, अकबर की अंगा ( आया ) थी | अकबर पढ़नेसे लेकर गद्दीनशीन हुआ तबतक अधमख़ाँकी माता ही अकबरकी संभाल लेती थी । माहमकी अन्तःपुरमें अच्छी चलती थी । इतना ही क्यों, अकबर भी उसको मानता था । बहरामख़ाँके वाद मुनीमखाँ वकील नियत हुआ था । इसकी यह सलाहकार थी | बहरामख़ाँको पदच्युत कराने में उसका बहुत हाथ था । अधमखाँ पंचहजारी था । वह मानकोट के घेरे वीरता दिखाकर प्रसिद्ध हुआ था । उसकी सहसा पदवृद्धि हुई थी इससे वह स्वेच्छाचारी होगया था । विशेष के लिए देखो, “आईन-इ-अकबरी प्रथम भागका ब्लॉकमनकृत अंग्रेजी अनुवाद पृ. ३२३-३२४.
२- पीरमहम्मद, शिखानका मुल्लां था । कंधार में यह बहरामख़ाँका कृपापात्र था और उसकी सिफारिशसे, अकबर जब गद्दीपर बैठा तब, वह अकबर के दर्वारमें अमीरकी पदवी प्राप्तकर सका था । उसने हेमू के साथ जो इन्छ हुआ था उसमें वीरता दिखाई थी । इसीलिए उसको 'नासीउल्मुल्क'
tl
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org