SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूरीश्वर और सम्राट्। देता है ' वालेकमसलाम ' दो जैन मिलते हैं तब वे 'प्रणाम' या 'जयजिनेंद्र ' बोलते हैं । अकबरके अनुयायी जब मिलते थे तब वे इनमेंसे एक भी बात नहीं करते थे। उनका अभिवादन तीसरे ही प्रकारका था। एक कहता था ' अल्लाहो अकबर ' दूसरा उत्तरमें बोलता था 'जल्लजलालुद्' * __ अकबरका चलाया हुआ यह रिवाज भी उसकी महत्त्वाकांक्षा को पूर्ण रूपसे प्रकट करता है । अस्तु । कहा जाता है कि, भारत के जुदा जुदा धर्मों और उनके अनुयायियोंके झगड़ों को देखकर अकबरका हृदय बहुत दुखी हुआ था । सभी अपनी अपनी सच्चाई प्रकट करनेका प्रयत्न करते थे, इसलिए वास्तविक सत्यको जानना असंभव हो गया था। इसलिए अकबरने यह जाननेका प्रयत्न किया था कि, किसी भी प्रकारके संस्कार बिना मनुष्यका मन कुदरती तौरसे किस तरफ झुकता है इसके लिए उसने बीस बालकोंको जन्मते ही ऐसे स्थानमें रक्खा कि, जहाँ मानवी व्यवहारकी हवा भी उन्हें नहीं लगती थी। अकबरने सोचा था कि जब वे बड़े होंगे तब मालूम हो जायगा कि प्राकृतिक रूपसे ये किस धर्मकी तरफ झुकते हैं । मगर इसमें उसे सफलता न मिली ! योग्य व्यवस्थाके अभावसे कई बालक तो मर गये और कई ३-४ वर्षके बाद से गूंगे ही रहे । ४ प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध जो कार्य किया जाता है उसका * आइन-ई-अकबरीफ प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादका १६६ वाँ पृष्ठ देखो। x देखो-दी हिस्ट्री आफ आर्यन रूल इन इंडिया, ले. इ. बी. हेवेल. प. ४९४ ( The History of Aryan rule in India By E. B. Havell P. 494. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy