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________________ शिष्य-परिवार। २-शान्तिचंद्रजी उपाध्याय, इनके गुरुका नाम सकलचंद्रजी था। उन्होंने ईडरके राजा रायनारायणकी + समामें वादीभूषण न मके दिगंबराचार्यको परास्तकर जय पाई थी । यह बात उन्हींके शिष्य अमरचंद कविने कुलध्वजरास-जो सं० १६७८ के वैशाख सुदि ३ रविवारके दिन बनाया गया है-को प्रशस्तिमें लिखी है। उन्होंने संस्कृत भाषामें ऋषभदेव और वीरप्रभुकी स्तुति बनाई है । वह स्तुति उन छंदोमें बनाई गई है जिनका प्रयोग 'अजितशान्तिस्तव ' में किया गया है। उन्होंने सं० १६५१ में जंबूद्वीपपन्नति की टीका भी बनाई है। वे कैसे प्रभावशाली थे सो तो अक भार्या मोहणदे लघुभ्रातृ सा० जगसी भार्या तेजलदे सुत सा० सोमा नाना भगिनी धर्माई भार्या सहजलदे वयजलदे सुत. सा० सूरजी स(रा)मजी प्रमुखकुटुंबयुतेन स्वश्रेयसे श्रीअकम्बरसुरत्राणदत्तबहुमानभट्टारकश्रीहीरविजयसूरिपट्टपूर्वाचलतटीसहस्रकिरणानुकारकाणां । ऐदयुगीनराधिपतिचक्रवर्तिसमान श्रीअकबरछत्रपतिप्रधानपर्षदि प्राप्तप्रभूतभट्टाचार्या दिवादिवं. दजयवादलक्ष्मीधारकाणां । सकलसुविहितभट्टारकपरंपरापुरदराणां । भट्टारकश्रीविजयसेनसूरीश्वराणां पादुकाः प्रोतुंगस्तू. पसहिताः कारिताः प्रतिष्ठापिताश्च महामहःपुरःसरं प्रतिष्ठि ताच श्रीतपागच्छे । भ० श्री विजयसेन सूरिपट्टालंकारहारसौ. भाग्यादिगुणगणाधारसुविहितसूरिशंगारभट्टारकश्रीविजयदेवसूरिभिः । लेखके संवतसे स्पष्ट विदित होता है कि, इस पादुकाको स्थापना उसी साल हुई है जिस साल विजयसेनसूरिका देहावसान हुआ था। १-यह वही राजा है कि, जिसका नाम अकबरनामाके तीसरे भागके अंग्रेजी अनुवादके पृ० ५९ में और आईन-इ-अकबरीके पहले भागके ब्लॉकमेनकृत अंग्रेजी अनुवादके पृ. ४३३ में आया है। यह राजा राठोड़ राजपूत था । और दूसरे नारायणके नामसे पहिचाना जाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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