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शिष्य-परिवार। तब उन्हें ले कर दोनों नागौरी सज्जन खानके पास गये । खानके हाथमें बादशाहका पत्र दिया गया। पत्र पढ़ कर उसने सादर उन्हें बिठाया और पूछा:-मेरे लायक जो काम हो सो कहिए।" उन्होंने खंभातमें जो घटना हुईथी, सो सुनाई और कहा कि, इस तरह रायकल्याणके मारे हमें अपना धर्म पालना भी कठिन हो रहा है । इसलिए इसका प्रबंध होना चाहिए।
मिर्जाखाँने उसी समय रायकल्याणको पकडलानेका हुक्म दिया । विठ्ठल वहीं था।वह पकड़ा गया।सारे गाँवमें फिराया गया और तीन दर्वाजेके पास बाँध कर दंडित किया गया। रायकल्याणको पकड़नेके लिये दोसौ घुड़सवार खंभात भेजे गये । यह खबर सुनकर रायकल्याण वहाँसे भागकर अहमदाबाद सूबेदारके पास आया। खाँने उसको बहुत बुरा भला कहा और साधुओंसे क्षमा माँगने की मूचना दी ।रायने जाकर साधुओंसे माफी माँगी और उनकी पद्धुली मस्तक पर चढ़ाई । उसने जुल्मसे बारह हजारका जो खत लिखा लिया था वह रद्दी किया गया और जिन्होंने भयके मारे जैनधर्मको छोड़ दिया था वे भी पुनः जैनी हो गये ।
वसीला क्या काम नहीं कर सकता है ? हजारों ही नहीं बल्के लाखों रुपये खर्च करने पर भी जो काम नहीं होता है वह वसीलेसे हो जाता है । इसी लिए तो शासनशुभैषी, धर्मधुरंधर पूर्वाचार्य मानापमानकी पर्वाह किये विना राज-दरिमें प्रवेश करते थे और रुके हुए धर्मके कार्यको अनायास ही पूर्ण करा लेते थे। इतिहासमें ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं।
एकवार सूरिजी खंभातमें थे तब अहमदाबादमें विमलहर्ष
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