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________________ सूबेदारों पर प्रभाष । 'मुँहपत्ती x 7 बंधी हुई थी। उसे देखकर उसने पूछा:- महाराज ! आपने मुँह पर कपड़ा किस लिए बाँध रक्खा है." सूरिजीने उत्तर दिया:--" इस समय शास्त्र मेरे हाथमें है। बोलते हुए कहीं इस पर थूकका छींटा न पड़ जाय, इस लिए यह कपड़ा बाँधा गया है।" हबीबुल्लाहने फिर पूछा:-थूक क्या नापाक है ? " सूरिजीने उत्तर दिया-" बेशक, जबतक वह मुंहमें रहता है पाक होता है । मुँहसे निकलते ही नापाक हो जाता है।" मूरिजीके उत्तरसे वह प्रसन्न हुआ । उसने निवेदन किया:" महाराज ! मेरे लायक कोई कार्य हो तो बताइए।" सूरिजीने कई कैदियोंको छोड़ देनेकी और जीवरक्षा करानेकी सूचना की । तदनुसार उसने कई बंदियोंको छोड़ दिया और शहरमें x मुँहपत्तीका संस्कृत नाम 'मुखवत्रिका' है। इसको जैनसाधु हमेशा अपने हाथमें रखते हैं । जब वे बोलते हैं तब मुँहके भागे धर लेते हैं। प्राचीन कालमें जब कागजोंका प्रचार नहीं हुआ था और ग्रंथ लंबे लंबे ताडपत्रों पर लिखे हुए थे तब, उन ग्रंथोंके पृष्ठोंको दोनों हाथोंमें पकडकर व्याख्यान बाँचना पड़ता था। इससे दोनों हाथ बँधजानेके कारण साधुओंको • मुँहपत्ती ' मुखपर बाँधनी पड़ती थी । हेतु यह था कि, थूक उड़कर शान पर न पड़े । मगर अब लंबे लंबे पृष्ठ हाथमे लेकर शास्त्र नहीं बाँचना पड़ता है। अब तो मजेदार ऐसे कागजों पर शास्त्र छप गये हैं कि जिन्हें दोनों हाथों में लेनेकी आवश्यकता नहीं पड़ती । इसलिए वर्तमान कालमें ' मुंहपत्ती' मुखपर बाँधकर व्याख्यान बाँचनेको कोई आवश्यकता हमें नहीं दिखती । एक हाथमें पृष्ठ और दूसरे हाथमें मुंहपत्ती रखनेसे काम चल सकता है । तो भी पुराना रिवाज अब भी कहीं कहीं दिखाई देता है । मगर व्याख्यानके समय मुँहपर ' मुखवत्रिका ' बाँधनेका जो खास कारण था वह मिट गया है, इसलिए उस पुराने रिवाजको पकड़े रहनेकी कोई भावश्यकता अब नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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