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सूरीश्वर और सम्राट् । है और धर्मशास्त्रों में पढ़ी है, वही मैं कह रहा हूँ। तुम्हारे शास्त्रोंमें यदि तुम कहते हो वैसे लिखा हो तो तुम भले वैसे ही मानो।"
आचार्यश्रीकी बात सुन कर कलाखा कुछ विचारमें पड़ा। उसने सोचा कि, जो वस्तु अगम्य है, परोक्ष है उसके लिए शास्त्रीय मोहसे हठ करके अपनी बातको सत्य मनानेका प्रयत्न करना व्यर्थ है। उसने कहा:
"महाराज ! आपका कहना ठीक है । जिस बातको हमने देखा ही नहीं है, उसके लिए हठ करना,-हम मानते हैं वही ठीक हैं ऐसा आग्रह करना-फिजूल है । मैं आपकी सरलतासे बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। मेरे लायक कुछ कार्य हो तो आज्ञा कीजिए।"
मूरिजीने अनुकंपादृष्टि से उन कैदियोंको छोड़ देनेकी सूचना दी कि जिनको प्राणदंडकी आज्ञा दी गई थी । तदनुसार उसने कैदियोंको छोड़ दिया और शहरमें इस बातका ढिंढोरा पिटवानेका हुकम दिया कि, समस्त नगरमें एक मास तक कोई भी मनुष्य किसी भी जीवको न मारे।
उसके बाद उसने सत्कार पर्वक सूरिनीको उपाश्रय पहुँचा दिया । यह उस समयकी बात है कि, जिस समय मूरिजी और अकबर बादशाहका कोई संबंध नहीं था।
____xखानखाना। अकबरके पाससे सूरिजी रवाना हो कर गुजरातकी ओर जा रहे थे, तब वे मेडते भी गये थे। उस समय खानखाना जो सूरिनीकी पवित्रता और विद्वत्तासे परिचित था-मेडतेहीमें था । उसने सूरिनीको, उन्हें नगरमें आये जान अपने पास बुलाया। और अच्छा सम्मान किया । उसने ईश्वरका स्वरूप जाननेके अभिप्रायसे प्रश्न किया,
* इसी पुस्तकक १२० वें पेजका नोट देखो ।
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