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________________ वर्तमान कालमें प्रस्तावना पुस्तकका भूषण समझी जाती है। इसलिए इस पुस्तककी प्रस्तावना या उपोद्घात लिखनेका कार्य मेरी अपेक्षा विशेष, गुर्नरसाहित्यका, कोई विद्वान करे तो उत्तम हो । वे इस पुस्तकके गुणदोष विशेषरूपसे बता सकें। इस कार्यके लिए मैंने गुर्जर साहित्यके प्रौढ एवं ख्यातनामा लेखक श्रीयुत कन्हैयालाल माणेकलाल मुन्शी बी. ए. एलएल. बी. एडवोकेटको उपयुक्त समझा । त्रे कार्यमें इतने रत रहते हैं कि उन्हें इस कार्यके लिए कहनेमें संकोच होता था; परन्तु उनके समान तटस्थ लेखकके सिवा इसे कर ही कौन सकता था ? अगत्या मैंने उनसे आग्रह किया। अपनी सज्जनताके कारण वे मेरे आग्रहको टाल न सके । कार्यकी अधिकता होते हुए भी उन्होंने उपोद्घात लिखना स्वीकार किया; लिख भी दिया । मुन्शीजीको उनके इस सौजन्यके लिए कौनसे शब्दोमें धन्यवाद दूँ? खंभात हाइस्कूलके हैड मास्टर शाह भोगीलाल नगीनदास एम. ए. को भी मैं धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता; क्योंकि उन्होंने अपने हाइस्कूलके फ़ारसी-शिक्षकसे इस पुस्तकमें दिये हुए फ़ारसी फर्मानोंका गुजराती अनुवाद करवा दिया। एल्फिन्स्टन कॉलेज बम्बईके प्रोफेसर शेख अब्दुलकादिर सरफ़राज़ एम. ए. को भी धन्यवाद देता हूँ कि, जिन्होंने परिश्रम करके फर्मानोंके अनुवाद ठीक कर दिये हैं। बहाउद्दीन कॉलेज जूनागढ के प्रोफेसर एस. एच. होडीवाला एम. ए. का नाम भी मैं सादर स्मरण किये विना नहीं रह सकता कि, जिन्होंने पुस्तकके छपेते फार्म देखकर मुझे कई ऐतिहासिक सूचनाएँ दे विशेष जानकर बनाया। अन्तमें मैं एक बातको यहाँ स्पष्ट करना चाहता हूँ। वह यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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