________________
-
दूरीश्वर और सम्राट। खानपुरनामक स्थानमें मुकाम किया। विजयसनसूरिके प्रवेशोत्सवके मौके पर बादशाहने हाथी, घोड़े, बाजा आदि बादशाही सामान दे कर प्रवेशोत्सवकी शोभाको द्विगुण कर दिया । इस तरह के उत्सव सहित विजयसेनसूरीने लाहोरमें वि० सं० १६४९ (ई. सं० १९९४ ) के ज्येष्ठ सुदि १२ के दिन प्रवेश किया।
विजयसेनसूरि भी अकबरके पास बहुत दिन तक रहे । उन्होंने अपनी विद्वत्तासे बादशाहको चमत्कृत करनेमें कोई कसर नहीं की । कहा जाता है कि, विजयसेनसूरि पहिले पहिल बादशाहसे लाहोरके 'काश्मीरीमहल' में मिले थे। हम पहिले यह बता चुके है कि नंदिविजयजी अष्टावधान साधते थे । ये विजयसेनसूरिके शिष्य थे । उन्होंने एक वार बादशाहकी सभामें भी अष्टावधान साधा, उस समय बादशाहक सिवा मारवाडके राजा मालदेवका पुत्र + उदयसिंह, जयपुरके राजा मानसिंह* कच्छवाह, खानखाना, अबुल्फ़ज़ल, आजमखाँ, जालौरका राजा ग़ज़नीखाँt और अन्यान्य राजामहाराजा एवं राजपुरुष वहाँ मौजूद थे। इन सबके बीचमें उन्होंने अष्टावधान साधा था । नंदिविजयजीका इस प्रकारका बुद्धिकौशल्य देखकर बादशाहने उनको 'खुशफहम ' की पदवीसे विभूषित किया था।
___ + यह उदयसिंह पन्द्रहसो सेनाका स्वामी था और मोटाराजा' के नामसे ख्यात था । विशेष जानने के लिए ब्लॉकमन कृत भाईन-इ-अकन. रीके प्रथम भागके अनुवादका ४१९ वाँ पृष्ठ देखना चाहिए । ____* यह मानसिंह जयपुरके राजा भगवानदासका पुत्र था । विशेष जानकारी के लिए ब्लॉकमॅन कृत आईन-इ-अकबरीके प्रथम भागके अंग्रेजी अनु. बादका ३३९ वा पृष्ठ देखना चाहिए । - यह चारसौ सेनाका नायक था। विशेष जाननेके लिए ब्लाकमेन कृत भाईन-इ-अकबरीके प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादका ४९३ वाँ पृष्ठ देखो,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org