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________________ ARRA १५८ सूरीश्वर और समाद। सुनाया, उनका हाथ लेकर अपने शिरपर रक्खा । भानुचंद्रजीने मधुर शब्दोंमें कहा:-"आप चिन्ता न करें। पीडा शीघ्र ही मिट जायगी।" थोड़ी ही देर में बादशाहका दर्द मिट गया । यहाँ यह कह देना आवश्यक है कि, इसमें किसी यंत्र-मंत्रकी करामत न थी। इसका कारण था, बादशाहका भानुचंद्रजीके वचनोंपर अटल विश्वास और भानुचंद्रजीका निर्मल चारित्र ! श्रद्धा और शुद्ध चारित्रका संयोग कौनसा कार्य सिद्ध नहीं करसकता है ? __ बादशाहकी शिरःपीड़ा मिटी, इसकी खुशी मनानेके लिए उमरावोंने पाँच सौ गउएँ एकत्रित की। बादशाहको जब यह बात मालूम हुई तब उसने उमरावोंसे पूछा:--" तुमने इतनी गउएँ क्यों जमा की हैं ? " उन्होंने उत्तर दिया:--" हुजूरका सिरदर्द मिट गया इसकी खुशीमें ये गायें कुर्बान की जायेगी। " बादशाह क्रुद्ध होकर बोला:- अफ्सोस ! मेरे आराम होनेकी खुशीमें दूसरोंकी कुर्बानी ! दूसरोंको खुश करनेके बजाय उनको बिलकुल ही दुनियासे उठा देना ! ! इनको फौरन् छोड़ दो और बेखोफ फिरने दो।" तत्काल ही सारी गायें छोड़ दी गई। भानुचंद्रजी इस बातको सुनकर प्रसन्न हुए। उन्होंने बादशाहके पास जा कर उसको आशीर्वाद दिया। बादशाह जब काश्मीर गया था, तब भानुचंद्रजी भी उसके साथ गये थे। कहा जाता है कि राजा बीरबलने एकवार अकवरसे कहा:" मनुष्यके काममें आनेवाले फल-मूल घास पात आदि सब पदार्थ सूर्यहीके प्रतापसे उत्पन्न होते हैं । अंधकारको दूर कर जगत्में प्रकाश फैलानेवाला भी सूर्य ही है। इसलिए आपको सूर्यकी आराधना करनी चाहिए।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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