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________________ १३२ सूरीश्वर और सम्राट् । इसीसे आप समझ सकते हैं कि मैंने कितनी शिकारें की हैं और उनमें कितने जीवोंको मारा है। महाराज ! मैं अपने पापोंका क्या वर्णन करूँ ? मैं हमेशा पाँच पाँच सौ चिड़ियोंकी जीमें खाता था; परन्तु आपके दर्शनके और आपके उपदेशामृतपान करनेके बाद मैंने वह पापकार्य करना छोड़ दिया है । आपने महती कृपाकरके मुझे जो उत्तम मार्ग दिखाया है उसके लिए मैं आपका अत्यंत कृतज्ञ हूँ । महाराज ! शुद्ध अन्तःकरणके साथ कहता हूँ कि, मैंने वर्षभर में से छः मास तक मांसाहार नहीं करनेकी प्रतिज्ञा ली है। और इस बातका प्रयत्न कररहा हूँ कि, हमेशा के लिए मांसाहार करना छोड़ दूँ। मैं सच कहता हूँ कि, मांसाहारसे मुझे अब बहुत नफरत होगई है । " बादशाहकी उपयुक्त बातें सुनकर सूरिजीको अत्यन्त आनंद हुआ । उन्होंने उसको उसकी सरलता और सत्यप्रियता के लिए पुनः पुनः धन्यवाद दिया । सूरिजी के उपदेशका बादशाह के हृदयपर कितना प्रभाव पड़ा सो, बादशाह के उपर्युक्त हार्दिक कथनसे स्पष्टतया समझमें आजाता है । बादशाह के दिल मांसाहार के लिए नफरत पैदा करानेके काम में यदि कोई सफल हुआ था तो वे हीर विजयसूरिही थे । इस तरह हीरविजयसूरिजी के समागमके बाद ही बादशाह के आचार-विचार और वर्तावमें बहुत बड़ा परिवर्तन होना प्रारंभ होने लगा था । शनैः शनैः इस परिवर्तनका प्रभाव कहाँतक हुआ सो हम अगले प्रकरण में बतायेंगे । यहाँ तो हम अबुल्फ़ज़लके मकान में सूरिजी और बादशाह आपस में जो ज्ञानगोष्टी हुई थी उसीका आस्वादन लेंगे । 1 बादशाहने प्रसंगवश कहाः "महाराज ! कई लोग कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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