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(२) जीवनसे परिचित है; मगर उन्होंने सूरिजीके चरित्रका एक ही पक्षसे -धार्मिक दृष्टिहीसे-परिचय पाया है, इस लिए वे भी उनको भली प्रकार पहचानते नहीं हैं। हीरविजयमूरि भले अकबरके दरिमें एक जैनाचार्य की तरह गये हों और भले उन्होंने प्रसंगोपात्त जैनतीर्थोंकी स्वतंत्रताके लिए, अकबरको उपदेश देकर पट्टे परवाने करवाये हों; मगर उनका वास्तविक उपदेश तो समस्त भारतको सुखी बनानेहीका था। जो हीरविजयसूरिके जीवनका पूर्णतया अध्ययन करेगा वह इस बातको माने विना ल रहेगा । 'जजिया' बंद कराना, लड़ाईमें जो मनुष्य पकड़े जाते थे उन्हें छुड़ाना ( बंदी-मोचन ) और मरे हुए मनुष्यका धनग्रहण नहीं करनेका बंदोबस्त करना-ये और इसी तरहके दसरे कार्य भी केवल जैनोंहीके लिये ही नहीं थे बरके समस्त देशकी प्रजाके हितके थे। क्यों भुलाया जाता है, भारतके आधार गाय, भैंस, बैल और भैंसों आदि पशुओंकी हत्याको सर्वथा बंद कराना,
और एक बरसमें जुदाजुदा मिलकर छः महीने तक जीवहिंसा बंद कराना, ये भी सभी भारत-हितके ही कार्य थे। इस कथनमें अतिशयोक्ति कौनसी है ? जिस पशुवधको बंद करनेके लिए आज सारा भारत त्राहि त्राहि कर रहा है तो भी वह बंद नहीं होता, वही पशुवध केवल हीरविजयसूरिके उपदेशसे बंद हो गया था । यह क्या कम जनकल्याणका कार्य था ? ऐसे महान् पवित्र जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरिजीके वास्तविक जीवनचरित्रसे जनताको वाकिफ करना, यही इस पुस्तकका उद्देश्य है । इस उद्देश्यको ध्यानमें रखकर ही इस ग्रंथकी रचना हुई है।
ई. सन् १९१७ के चातुर्मासमें, सुप्रसिद्ध इतिहासकार विन्सेन्ट ए. स्मिथका अंग्रेजी — अकबर' जब मैंने देखा, और उसमें हीरविजयसरिका भी, अकबरकी कार्यावलिमें, स्थान दृष्टिगत हुआ,
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