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प्रतिबोध ।
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बतायेंगे वह मैं सानंद करूंगा । फर्माइए मैं कौनसी ऐसी सेवा करूं जिससे आप खुश हों ? १५
अकबर के समान सम्राट्की इतनी भक्ति, इतनी उत्सुक प्रार्थना देखकर भी सूरिजीको अपने निजी स्वार्थका खयाल नहीं आया । उस समय यदि वे चाहते तो अपने लिए, अपने गच्छके लिए या अपने अनुयायियोंके लिए, बादशाहसे बहुत कुछ कार्य करवा लेते; परन्तु सुरिजीने तो ऐसी कोई बात न की । वे संसारमें सर्वोत्कृष्ट कार्य जीवोंको अभय बनानेका समझते थे। इसलिए जब जब बादशाहने सूरिजी से कोई सेवाकी इच्छा प्रकट की तभी तब उन्होंने बादशाहसे जीवको अमय बनानेका - जीवोंको आराम पहुँचानेका ही कार्य कराया ।
इस समय बादशाहने जब सेवा करनेकी इच्छा प्रकट की तब सूरिजीने कहा:- " तुम्हारे यहाँ हजारो पक्षी दरवोंमें बंद हैं। उन बेचारोंको मुक्त कर दो । ” बादशाहने सूरिजीके इस अनुरोधका - उपदेशका पालन किया । ' फतेहपुर सीकरी में एक 'डावर नामका बहुत बड़ा तालाब है। उसके लिए उसने हुक्म दिया कि, कोई व्यक्ति उसमें से मछलियाँ न पकड़े। इस आज्ञाको तत्काल ही व्यवहार में लाने के लिए श्रीधनविजयजी कुछ सिपाहियोंको साथ लेकर तालाब पर गये और उन लोगोंको-जो उस समय वहाँ मछलियाँ पकड़ रहे थे - हटा दिया । 'हीरसौभाग्यकाव्य' के कर्ता लिखते हैं कि, डाबर तालाब में होनेवाली हिंसा बादशाहने श्रीशान्तिचंद्रजी के उपदेश से बंद की थी ।
उस समय शेख अबुल्फ़ज़लके मकानमें सूरिजी और बादशाहके आपस में बहुत देर तक धर्मचर्चा होती रही । एकान्त होनेसे जैसे अकबर ने खुले दिलसे अपनी शंकाएँ पूछी, उसी तरह सूरि
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