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सूरीश्वर और सम्राट्। मूरिके कई शिष्य यहाँ आ पहुंचे हैं। वे बादशाहसे मिलना चाहते हैं।"
अबुलफज़लने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिया:--" अच्छी बात है। उन्हें ले आओ। हम उन्हें बादशाहके पास ले जायेंगे।"
यहाँ इतना कह देना आवश्यक है कि, सूरीश्वरजीके आनेसे पहिले ही, विमलहर्ष उपाध्याय बहुत जल्दी बादशाहसे मिलना चाहते थे, इसका खास सबब यह था कि, बादशाहके संबंधमें नाना प्रकारकी अफवाहें सुनी जाती थीं। कई उसको बिलकुल असभ्य बताते थे; कई उसको क्रोधी बताते थे, कई उसको प्रपंची ठहराते थे
और कई धर्माभिलाषी भी कहते थे। इससे उपाध्यायजी आदि पहिले आये हुए मुनियोंने सोचा कि, हमें पहिले ही बादशाहसे मिलना चाहिए और देखना चाहिए कि, वह कैसी प्रकृतिका मनुष्य है। यदि वह असभ्य होगा और हमारा अपमान करेगा तो कोई दुःखकी बात नहीं है; परन्तु यदि वह सूरीजी महाराजका अपमान करेगा तो वह हमारे लिए महान् असह्य दुःखदायी होगा । शायद हमें किसी विपत्तिमें फँस जाना पड़े तो भी गुरुभक्ति या शासन-सेवाके लिए हमारे लिए तो वह श्रेयस्कर ही होगा । उससे सरिजी महाराजको सचेत होनेका समय मिलेगा । इन्हीं विचारोंसे प्रेरित होकर उन्होंने बादशाहसे पहिले मिलना उचित समझा था ।
श्रावक बुलाने आये । उपाध्यायनी सिंहविमलपन्यास, धर्मसी ऋषि और गुणसागरको साथ लेकर पहिले अवुल्फ़ज़लके यहाँ गये । अबुल्फजल के पास पहुँच कर उपाध्यायजीने कहा:" हम फकीर हैं , भिक्षावृत्तिसे जीवन-नियोह करते हैं । एक कौड़ी भी अपने पास नहीं रखते हैं । हमारे पास गाँव, खेत, कूए, घरबार
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