SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्राट-परिचय। AamnARALAnnawAAAAAndroin कहा जा सकता है कि, अकबर लोभी था। उमीका यह परिणाम है कि, वह मा जब सिर्फ आपके किलेके खजानेमें दो करोड़ पौंड (तीस करोड रूपये ) की कोर के नो सिफ सिके ही निकले थे। अन्य छः तिजोरियोंमें भी में ही सिक्के भरे हुए थे। विन्सेंट स्मिथ कहता है कि, इस सनी स्थितिको देखते हुए तो वह मिल्कियत बीस करोड़ पौंडकी ( तीन अरब रुपयेकी ) कही जा सकती है। अकबरका अन्तःपुर ( जनानखाना ) एक बड़े कस्बेके समान था । उसके अन्तःपुरमें ५००० स्त्रियाँ थीं। प्रत्येकके रहनेके लिए भिन्न भिन्न मकान थे। उन स्त्रियोंको अमुक अमुक संख्या में विभक्त कर प्रत्येक विभाग पर एक एक स्त्री दारोगा नियत की हुई थी। और उनके खर्चका हिसाब रखनेके लिए क्लर्क रक्खे गये थे। अकबरने 'फतेहपुर-सीकरी में एक ऐसा महल बनाया था, कि, जिसकी सारी इमारत केवल एक ही स्तंभ पर खड़ी की गई थी। यह महल 'एक थंभेका महल ' के नामसे मशहूर है । कवि देवविमलगणिने भी अपने 'हीरसौभाग्य' नामक काव्यके १० वें सर्गके ७५ वें श्लोकमें इस एक स्तंभवाले महलका उल्लेख किया है । * ___ अब अकबरके विषयकी सिर्फ एक बात लिख कर उसका परिचय स्थगित करेंगे । इसी प्रकरणमें एक जगह कहा गया है वैसे, अकबरके हृदयमें कुछ धर्मसंस्कारकी मात्रा जरूर थी । उसके हृदयमें बारबार यह सवाल उठा करता था कि, जिसके लिए लोगोंमें इतना आन्दोलन हो रहा है वह धर्म चीज क्या है ? और उसका वास्तविक तत्त्व क्या है ? * " उन्नालनीरजमिव श्रियमापदेक स्तंभं निकेतनमकब्बरभूमिमानोः ।" अर्थात्-जैसे एक नालके ऊपर कमल सुशोभित होता है, वैसे ही एक स्तंभ पर खड़ा हुआ अकबरका महल सुशोभित होता है । www Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy