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________________ परिशिष्ट ३१ जम्मु शहर श्री महावीर स्वामीजी ३२ वेरोवाल ,, पार्श्वनाथजी १६८८ जेठ सुदि ५ ३३ नकोदर , धर्मनाथजी ३४ सढोरा ,, ऋषभदेव स्वामी १६६५ मंगसर सुदि १० ३५ सुनाम नेमिनाथजी १६६५ माघ सुदि ७ ४३६ खानगाडोगरा ,, शांतिनाथजी १६६७ फागण वदि ६ ४३७ कसूर ,, ऋषभदेव स्वामीजी १६६६ पोष सुदि १५ ३८ रायकोट " सुमतिनाथजी २००० वैसाख सुदि६ ४३६ स्यालकोट ,, चारशाश्वते जिन २००३ मगसर सुदि ५ ४४० पटियाला ४१ नाभा संभवनाथजी यह शिखर बद्ध ४२ जेहलम ,, चंद्रप्रभ स्वामीजी नहीं हैं, छोटे हैं ४३ राहों , पार्श्वनाथजी उपाश्रय में ४४ श्री शंकर x४५ डेरागाजीखां ,, ऋषभदेव स्वामीजी फागण वदि ३ ४४६ लतम्बर ,, पार्श्वनाथजी ४४७ बन्नू ,, अजितनाथजी १९८८ माघ सुदि ५ ४४८ कालाबाग ,, अभिनन्दन स्वामीजी ४६ फाजिलका , सुमतिनाथजी १६६६ माघ ५० फाजिलका ,, चंद्रप्रभ स्वामीजी २००१ फागण सुदि ३ ५१ भेरा ,, चंद्रप्रभ स्वामीजी यह तीनों ही प्राचीन तीर्थ ५२ कांगडा , ऋषभदेव स्वामीजी हैं, जैनों के घर नहीं है ५३ हस्तिनापुर ,, शांतिनाथजी धर्मशालायें है पुराणाकांगड़ा ५४ देहली ,, चार पांच मंदिरजी सरकारी किले में भगवान की मूर्ति बिराजमान है। पंजाब में जो जैन मंदिर देख पड़ते आज हैं, सद्धेतु उनके एक आत्माराम जी मुनिराज हैं। उपदेश आत्मारामजी का यदि वहां होता नहीं, तो जैनियों का स्वप्न में आलस कभी खोता नहीं ॥ (सूरि शतक काव्य ६८) (x) इस चिन्ह वाले सब पाकिस्तान में चले गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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