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________________ २२ श्री वल्लभविजयजी २३ भक्तिविजयजी २४ ज्ञानविजय जी २५ " शुभविजयजी २६ " સેંક " " ग्राम कपूरविजयजी ३३, ३४ लाभविजयजी आदि वर्तमान में आपके पट्टधर आचार्यवर्य श्री मद्विजयवल्लभसूरीश्वर जी महाराज आदि एवं उनके शिष्य प्रशिष्यादि और आज्ञावर्ती साधु साध्वीयांजी सैंकड़ों की संख्या में देश देशान्तरों में विचरकर उपकार कर रहे हैं । १ अमृतसर २ जीरा ३ होशियारपुर ४ पट्टी ५ अम्बालाशहर ६ सनखतरा २६ " ३० "" विजय जी (श्री हीर वि० मा० के शिष्य ) पुस्तकों के नाम परिशिष्ट २७ श्री मानविजय जी २८ जशविजयजी मोतीविजय जी Jain Education International " १६४८ १६४८ १६४८ १६५१ १६५२ १६५३ १ श्री नवतत्त्व २ श्री जैन तत्त्वादर्श ३ श्री अज्ञानतिमिर भास्कर श्री दादा गुरुदेव के वरद हस्त से कहां २ प्रतिष्ठा और अंजनशलाका हुई । मिति प्रतिष्ठा अंजनशलाका सम्वत् चन्द्रविजयजी वैसाख सुदि ६ मगर सुदि ११ माघ सुद ५ माघ सुदि १३ मगसर सुदि १५ पूर्णिमा वैसाख सुदि १५ 29 आरंभ स्थान और संवत् बिनौली १६२४ गुजरांवाला १६३७ अम्बाला १६३६. ار For Private & Personal Use Only 39 " دو ३१ श्री रामविजय जी ३२ विवेकविजय जी " " 39 श्री दादा गुरुदेव के रचित ग्रन्थों के शुभ नाम " उपदेश ही देते न थे वे ग्रंथकर्ता भो रहे, भर्ता रहे बुधवृन्द के त्रयताप हर्ता भी रहे । उनकी बनाई पुस्तकें जग में प्रतिष्ठित आठ हैं, जिनका सुधीजन प्रेमपूर्वक नित्य करते पाठ हैं || 99 23 ४२७ = x = x : [ सूरिशतक काव्य ६३ ] समाप्ति स्थान और संवत् asta होशियारपुर खंभात १६२४ १६३८ १६४२ www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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