________________
चिकागो-अमेरिका से आमन्त्रण
३८९
%3
I wiill at present, only offor on behalf of community and their High Priest, Muui Atmara mji whom I especially represent here, our sincere thanks for the kind welcome you have given us. This spectacle of the learned leaders of thought and religion meeting together on a common platform and throwing light on religious problems, has been the dream of Atmaramji life. He has commissioned me to say to you that he offers his most cordial congratulations on his own behalf and on behalf of the Jain community for your having echieved the consumation of the grand ides of convening a parliament of Religions.
भावार्थ-मैं जैन धर्म का प्रतिनिधि हूँ, जैन धर्म बुद्ध धर्म से प्राचीन, चारित्र धर्म में उससे मिलता जुलता परन्तु अपने दार्शनिक विचारों में उससे भिन्न है। आजकल इस धर्म के अनुयायी भारतवर्ष में १५ लाख बड़े शान्त और नियम बद्ध जीवन वाले प्रजाजन हैं।
___ मैं इस समय अपनी समाज की ओर से और उसके महान् गुरु मुनि आत्मारामजी की ओर से आप लोगों के इस आतिथ्य सत्कार का धन्यवाद करता हूँ । धार्मिक तथा दार्शनिक विद्वानों का एक ही प्लेटफार्म पर इकट्ठे होकर धार्मिक विषयों पर प्रकाश डालने का यह दृश्य मुनि श्री आत्मारामजी के जीवन का एक स्वप्न था । गुरुदेव ने मुझे यह आज्ञा दी है कि मैं वस्तुतः उनकी ओर से तथा समूची जैन समाज की ओर से सर्वधर्म परिषद् बुलाने के उच्च आदर्श तथा उसमें सफलता प्राप्त करने पर आपको धन्यवाद दूं।
आचार्यश्री के इस विद्वान प्रतिनिधि ने चिकागो की सर्वधर्म परिषद् में बोलते हुए किस योग्यता से अपना पक्ष उपस्थित किया और उसका वहां की जनता पर कितना प्रभाव हुआ यह यह उस समय के एक अमरीकन पत्र के शब्दों से पता चलता है यथा
A number of distinguished Hindu scholars, philosophers and religions teachers attended and addressed the Parliament some of them taking rank with the highest of any race for learning, eloquence and piety. But it is safe to say that no one of the oriental scholars was listended with greater interest than the young layman of the Jain community as he declared the ethics and philosophy of his people.
____ भावार्थ-अनेकों जगद् विख्यात हिन्दू विद्वान दार्शनिक पंडित और धार्मिक नेता परिषद् में संमिलित हुए और उन्होंने व्याख्यान दिये । उनमें कुछ एक की गिनति तो विद्वत्ता, दया तथा चारित्र में किसी भी जाति के बड़े से बड़े विद्वानों में होती है यह कहना कोई अत्युक्ति नहीं कि पूर्वीय विद्वानों में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org