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________________ अध्याय १०८ "होशयारपुर में प्रतिष्ठा समारोह" जालन्धर से विहार करके आप होशयारपुर पधारे। यहां पर भी एक भव्य विशाल जिन मन्दिर तैयार हुआ था, जिसके बनाने का श्रेय यहां के धर्मात्मा श्रावक ला० गुज्जरमलजी को था। यह मन्दिर सारे पंजाब में अपनी श्रेणी का एक ही है। इसके ऊपर का सारा भाग सुनहरी है-उस पर सोना चढ़ा हुआ है, उसकी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करने के शुभ मुहूर्त का निश्चय करना था, जो माघ शुक्ला पंचमी ( बसन्त पंचमी ) का निश्चित हुआ तदनुसार उसी दिन शास्त्र विधि के अनुसार बड़े भव्य समारोह के साथ भगवान् श्री वासुपूज्य स्वामी की विशाल और परम सुन्दर प्रतिमा को मन्दिर में प्रतिष्ठित किया गया । प्रतिष्ठा का कार्य सम्पूर्ण होने के बाद आपने इधर उधर के ग्रामों में भ्रमण करने और धर्मोपदेश देने के अनन्तर वि० सं० १६४६ का चातुर्मास होशयारपुर में ही किया । चौमासे में श्री मानविजय उपाध्याय विरचित धर्मसंग्रह और श्री संघतिलक सूरि विरचित तत्त्वकौमुदी नामा सम्यक्त्व-सप्तति की वृत्ति का व्याख्यान करते रहे । चातुर्मास के बाद जम्बू प्रान्त के ब्राह्मण कर्मचन्द और वडोदे के रईस लल्लुभाई को जैनधर्म की साधु दीक्षा देकर उनके क्रमशः कर्पूर विजय और लाभविजय नाम रक्खे और इनको अनुक्रम से श्री उद्योतविजय और श्री कान्तिविजयजी के शिष्य घोषित किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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