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________________ • पट्टी में चातुर्मास प्रतिष्ठा का कार्य निर्विघ्नतया समाप्त हो जाने के बाद आपने पट्टी के श्रावक समुदाय को चातुर्मास के लिये सर्व प्रथम होने वाली विनति का ध्यान रखते हुए उधर को विहार किया और आप जंडियालागुरु में पधारे । यहां पर कुछ दिन निवास करने के बाद आपने पट्टी को विहार किया और पट्टी के श्रावक समुदाय की भावना को फलीभूत करने के लिये सं० १९४८ का चातुर्मास आपने पट्टी में किया। इस चातुर्मास में पट्टी की जैन प्रजा आपश्री के धार्मिक प्रवचनों से बहुत उपकृत हुई और उसके धार्मिक अनुराग में आशातीत प्रगति आई । सत्य है विनागुरुभ्यो गुणनीरधीम्यो, जानाति धर्म न विचक्षणोऽपि । आकर्ण दीर्घोज्वललोचनोऽपि, दीपंविना पश्पति नान्धकारे ॥ अर्थात् जैसे विशाल और उज्वल नेत्र रखने वाला व्यक्ति भी अन्धकार में पड़ी हुई वस्तु को दीपक आदि के प्रकाश के विना नहीं देख सकता,इसी प्रकार सद्गुणों के समुद्ररूप गुरुजनों के बिना बुद्धिमान पुरुष भी धर्म के यथार्थ स्वरूप का बोध प्राप्त नहीं कर पाता। की पट्टी के चौमासे में आपने साधुओं की प्रार्थना से चतुर्थ स्तुति निर्णय का द्वितीय भाग और जीरा श्रीसंघ की प्रार्थना से नवपद पूजा की रचना की । पूजा के अन्तिम पद्य-कलश-में आप इस प्रकार लिखते हैं, (जंगला ताल कहरवा) भविवन्दो जिनन्द मत करणीने ॥ अंचली । इम नवपद मंडल गुण बरणी, चार न्यास दुःख हरणीने ॥१॥ सम्यक् सातनये सबजाणी, प्रादरिकुमति विसरणीने ।। २ ॥ श्री तपगच्छ नभोमणि मुनिपति, विजयसिंह मरि चरणीने ॥ ३ ॥ सत्यकपूर क्षमा जिन उत्तम, पनरूप अघहरणीमे ॥ ४॥ कीर्तिविजय कस्तूर सुगंधी, मणितिमिर जगहरणीने ॥ ५ ॥ श्री गुरु बुद्धि विजय महाराजा, विजयानन्द जिनसरणीने ॥ ६ ॥ जीरागांव तिहां संघ जयंकर, सुखसंपत उदय करणीने ॥ ७॥ तिनके कथन से रचना कीनी, सुगमरीत अघ हरणीने ॥८॥ चसु युग अंक इन्दु' शुभ वर्षे, पट्टीनगर सुखधरणीने ।। 8 ।' रहि चौमासा यह गुणगाया, प्रातम शिववधू परणीने ॥ १० ॥ व्याख्यान में श्री उत्तराध्ययन सूत्र-कमल संयमी टीकावाला] और भावनाधिकार में श्री रत्नशेखर सूरिकृत श्राद्ध प्रतिक्रमण वृत्ति अर्थ दीपिका वाचते रहे । पट्टी का यह चातुर्मास, पंजाब में होने वाले आपके अन्य चातुर्मासों में विशेष उल्लेखनीय स्थान रखता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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