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गुरु चरणों में अनन्यानुराग
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सेठजी के इस कथन से वे दोनों सद्गृहस्थ बड़े प्रभावित हुए उन्होंने बड़ी श्रद्धा से नतमस्तक होकर प्राचार्यश्री के चरणों में प्रणाम किया और उत्तर में आशीर्वादात्मक धर्मलाभ देते हुए सेठजी की प्रार्थना को ध्यान में रखकर और आगन्तुक सद्गृहस्थों की धर्माभिरुचि को देखकर आपश्री ने मानव जीवन की दुर्लभता और उसके कर्तव्य का निर्देश करते हुए बड़े मार्मिक शब्दों में धर्म का लक्षण और उसके व्यापक स्वरूप का निरूपण किया। आपश्री के धर्म प्रवचन को सुनकर उन दोनों सद्गृहस्थों ने अपने सद्भाग्य की भूरि २ सराहना करते हुए आचार्यश्री के चरणों में कृतज्ञता पूर्ण शब्दों में प्रणाम करते हुए सेठजी को बहुत धन्यवाद दिया और कहा कि निस्सन्देह आप बड़े पुण्यशाली हैं, जिन्हें ऐसे त्यागशील तपस्वी और परम मनीषी सद्गुरु का पुण्य सहवास प्राप्त हुआ है । भगवान करे कि हमें भी आप जैसा हृदय और ऐसे सद्गुरु का अधिक नहीं तो कभी २ सहयोग अवश्य प्राप्त हो । इतना कहकर वे आचार्यश्री को नमस्कार और उत्तर में धर्मलाभ प्राप्त करके वहां से विदा हुए।
मैसाणा का चातुर्मास अहमदाबाद से विहार करके आप मैसाणा पधारे और श्री संघ की आग्रह भरी विनति से सम्बत् १६४५ का चातुर्मास आपने मैसाणा में किया । मैसाणा में लगभग ५०० घर जैनों के और उनके दश देव मंदिर हैं । आपका मोतिये का ऑपरेशन अभी ताज़ा था, डाक्टर ने पुस्तक बांचने को मना कर रक्खा था। इसलिये प्रतिदिन का व्याख्यान आपकी जगह आपके प्रशिष्य श्री हर्षविजयजी महाराज बांचते रहे । व्याख्यान में श्री भगवती सूत्र सटीक और धर्मरत्न प्रकरण का वाचन चलता रहा। इस चौमासे में समयानसार होने वाले धर्म कार्यों में से सबसे अधिक महत्व का कार्य यह हुआ कि प्राचीन जैन पुस्तकों के पनरुद्धार के लिये दो हजार रुपया एकत्रित हुआ और इस कार्य को सतत चालू रखने का प्रबन्ध भी हुआ।
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