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“सम्पादन के विषय में दो शब्द"
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादनका काम मुझे आचार्यश्री की आज्ञा से स्वीकार करना पड़ा, मेरा अनुभव इस विषय में बहुत ही परिमित है, इसलिये इसमें अनेक त्रुटियों का होना सम्भव है, फिर भी अपनो
ओर से इसके संशोधन और सम्पादन में किसी प्रकार का प्रमाद नहीं किया गया। मुझे इस विषय मेंआनन्द प्रिंटिंग प्रेस के मालिक श्री ईश्वरलालजी का अधिक सहयोग मिला, तदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। इसके अतिरिक्त
गच्छतः स्खलनं क्वापि, भवत्येव प्रमादतः ।
हसन्ति दुर्जनास्तत्र, समादधति सज्जना ॥ इस अभियुक्तोक्ति के अनुसार पाठक अपनी सज्जनता का परिचय देते हुए सम्पादन सम्बन्धी त्रुटियों की ओर ध्यान नहीं देंगे, इस शुभाशा से विरमता हूँ।
विनीत
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