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भावनगर के राजा से मिलाप और वेदान्त चर्चा
सकती है। मैं तो आपके इस प्रस्ताव को अपने लिये भी लाभदायक समझता हूँ, एक देश के जन्मे हुए विभिन्न सम्प्रदाय के दो महान आचार्यों का एक स्थान पर सप्रेम मिलकर बैठना कुछ कम महत्व नहीं रखता और उनके पुनीत दर्शन तथा उपदेश से लाभ उठाने का अवसर भी किसी पुण्यशाली को ही मिलता है । इसलिये आपने मिलाप का जो प्रस्ताव मेरे सामने रक्खा है मैं उसका पूरा २ समर्थन करता हूँ | परन्तु यह हो मिलाप कैसे ? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। आप उनके स्थान पर चलकर जावें या वे आपके स्थान पर यह भी व्यावहारिक दृष्टि से कुछ उचित प्रतीत नहीं होता । आप दोनों ही महानुभाव संभावित और सम्मान्य व्यक्ति हैं इसलिये मेरे विचारानुसार तो आप दोनों महापुरुषों का मिलाप मेरे अपने खानगी स्थान पर होना चाहिये, आप दोनों वहां पधारें, और आनन्द पूर्वक वार्तालाप करें ।
स्वामी आत्मानन्दजी - आपका विचार बहुत श्लाघनीय है, आप जैसा उचित समझें वैसा प्रबन्ध करलें और उन्हें भी सूचित कर दें। बहुत अच्छा कहकर राजा साहब ने वहां के एक मुख्य श्रावक को बुलाकर कहा कि श्री आत्माराम आनन्द विजयजी के पास जाकर मिलाप सम्बन्धी सारी बातचीत करके वापिस आकर हमें पता दो ताकि दिन वगैरह का निश्चय कर लिया जावे। राजा साहब की बात को सुनकर वह श्रावक महाराज श्री आनन्द विजयजी के पास आया और वन्दना करने के अनन्तर राजा साहब के दिये हुए सन्देश को सुनाते हुए बोला
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महाराज ! आपके देश के श्री आत्मानन्द नाम के एक सन्यासी महात्मा आये हुए हैं, वे आप से मिलने की इच्छा रखते हैं। राजा साहब ने आप दोनों महापुरुषों के मिलाप का प्रबन्ध अपने निजी स्थान में किया है, ताकि एक दूसरे को एक दूसरे के स्थान पर माने जाने में किसी प्रकार का संकोच भी न हो और राजा साहब ने यह भी फर्माया है कि दोनों महापुरुषों के मेरे स्थान पर पधारने से मेरा स्थान पवित्र होगा, मुझे दोनों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा तथा परस्पर की बातचीत सुनने का शुभ अवसर मिलेगा ।
श्री श्रानन्दविजय जी - श्रावक की सारी बात चीत सुनकर प्रसन्नचित्त से बोले- जाओ राजासाहब से हमारा धर्मलाभ कहना और उन से कहना कि आपने हम दोनों के मिलाप का जो सुचारु प्रबन्ध किया है यह आपका नीतिपूर्ण व्यावहारिक कौशल्य है जिसकी हर एक बुद्धिमान प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता, वैसे तो महात्माजी यदि चाहें तो मुझे उनके स्थान पर जाने और उनसे भेट करने में भी किसी प्रकार का संकोच नहीं है । इसलिये आप जब और जिस दिन का निश्चय करें उसकी सूचना मिलने पर मैं
चला आऊंगा।
महाराज श्री आनन्द विजय जी के इस कथन को श्रावक ने जब राजा साहब को जाकर सुनाया तो राजा साहब बड़े प्रसन्न हुए और कहा कि मैं कोई तारीख निश्चित करके महाराज श्री को अवश्य सूचित
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