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________________ ( ६० ) चंद महीनों पूर्व लखनऊ में हलवासिया मार्कीट स्थित गिरजाघर में एक नन से मेरी मुलाकात हुई । कुछ प्रश्नों पर चर्चा इस प्रकार हुई१. प्रभु यीशू ने अपने भक्तों को मत्स्य भक्षण क्यों कराया ? प्रश्न पूछने पर प्रत्युत्तर मिला कि प्रभु ने 'मिराकल' किया। मैंने कहा-मिराकल तो केवल रोटियों से भी किया जा सकता था। २. मांसाहार के विषय में चर्चा चलने पर उस नन ने बताया कि यीशू ने जो ४० दिन फास्ट किये उन पवित्र दिनों में मांसाहार का निषेध है । मैंने कहा-मांस जैसी अपवित्र वस्तु का पवित्र दिनों में भक्षण उचित भी कैसे हो सकता है ? ३. अंतिम प्रश्न मैंने पूछा कि क्या आप भी मांस भक्षण करती हैं ? स्वी कारात्मक उत्तर मिलने पर मैंने कहा आपको घृणा नहीं होती ? उन्होंने कहा-हम बनता हुआ नहीं देखते, यदि बनता हुआ देख लं तो कोई सज्जन भक्षण न कर सके । ....... और मैं सोचने लगी कि देखो विवेक, बुद्धि, ज्ञान सर्वस्व होने पर हम जानते हुए भी अनजान बन जाते हैं। परमात्मा ने हमें बड़े प्यारे दो चक्षु दिये हैं लेकिन हम देखने की कोशिश ही नहीं करते और आध्यात्मिक चक्षुओंसे देखने का तो हम कष्ट ही नहीं करते, करें भी क्यों ? क्योंकि फिर हमारी रसनेन्द्रिय का क्या होगा? अत: विवेक चक्षुओं उन्मीलित न करने में ही हमने अपना हित समझ लिया बाइबिल के लूका उपदेश में एक मनुष्य की कथा आती है जिसका छोटा बेटा अपनी सम्पत्ति का भाग लेकर दूर देश में जा कुकर्मों में सम्पत्ति नष्ट कर देता है। अपनी भूल का अहसास होने पर वापिस पिता के पास आता है । पुत्र आगमन की खुशी में पिता दासों से कहता है-“पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खावें और आनन्द मनावें " ज्येष्ठ पुत्र इसी बात पर रूष्ट होता है कि उसे तो पिता ने आनन्द मनाने के लिए कभी बकरी का बच्चा भी न दिया और इस नालायक पुत्र के लिए पला हुआ बछड़ा कटवाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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