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________________ ( ५७ ) दुरुपयोग स्वाद लोलुपता हेतु करें तो इसे हम गुरुओं का आदेश नहीं मान सकते । इस सम्बन्ध में अरविन्दर कौर लिखतो हैं- “एक दिन मैंने अपनी एक सहेली को (जो सिख है) यह बताया कि मैं मीट या नॉनवेज नहीं खाती हूँ। मेरो बात सुनते ही वह बोली मीट नहीं खाती, कैसी सरदार है तू ? यही बात मैंने कितने लोगों को एक-दूसरे से कहते सुनी है। लेकिन मैं यह सोचती हूँ -मीट खाने पर हमें मनाही हैं फिर भी हम लोगों से उपरोक्त प्रश्न पूछते हैं ।"१ गुरुओं ने तो जीवदया का ही उपदेश दिया है। गुरुनानक के समय कौड़ा राक्षस का उल्लेख आता है जो विन्ध्याचल के नीचे दक्षिणी जंगलों में रहता था और आदमखोर भील जाति का सरदार था एवं आदमियों को मार कर खाता था । गुरुजी ने अपनी आत्मशक्ति ये कौड़े कुकर्मों से हटाकर जीवों पर दया करने का उपदेश देकर राक्षस से देवता बना दिया। सर्व भूतों के प्रति प्रेम भाव का उपदेश देते हुए गुरु गोविन्द सिंह जी कहते हैं- "जिन प्रेम कियो, तिन ही प्रभु पायो।" उन्होंने कभी भी पहले किसी पर आक्रमण नहीं किया लेकिन "आत्मरक्षार्थ हिंसा-हिंसा न भवति" उक्ति का अनुकरण करते हुए आक्रमणकारी का सामना किया। वे कहते हैं - चूँकार अजहमा हीलते दर-गुजशत" अर्थात् जब बातचीत से शांति के सारे प्रयास विफल हो जाये या शांति,से अपनी आजाद तथा धर्म का हक न मिले तो इसको पाने के लिये शस्र उठाना उचित (हलाल) है। जैसाकि सभी धर्मो में कहा गया है-"न किसी से डरो, न डराओ, न किसी का हक मारो न अपना हक छोड़ो। आजादी से जोयो और दूसरों को भी जीने दो।" १ नानका संदेश -लेख -सिख धर्म व आज की स्त्री पृष्ठ १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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