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________________ ( ५२ ) बकरा अथवा दुम्बा जो भी रखने की होगो, रख लेंगे। शुरू में ही क्यों निर्दोष एवं मूक पशुओं को कुर्बानो के लिये तैयार कर दिया जाये । और फिर यदि स्वर्ग प्राप्ति का माग इतना सुगम है तो जैसा कि धर्म सुधारक कहते हैं पढ़े नमाज रखे फिर रोजा, परायें पुत्र का काढ़ हिया। गर दहिश्त मिले यों ही तो, क्यों न कुटुम्ब हलाल किया। मुहम्मद साहिब जिनका कलेजा रेत में तड़पते हुए एक विच्छ को देख. कप द्रवित हो उठता है, पकड़कर उसे छाया में रखते हैं । बिच्छु उनके हाथ में काटकर फिर धूप में चला जाता है । फिर उठाते हैं बिच्छु काटता है । ऐसा तीन बार करने पर उनका साथी कहता है “यह तो हैवान है, काटता रहता है, फिर भी आप उस हैवान को बचाते हो जा रहे हैं । ऐसे कष्टदायी हैवान को तो मार डालना चाहिये।" मुहम्मद साहब के मुख से क्या निकलता है ? कि बिच्छु जब हैवान होकर भी अपने धर्म को नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपने धर्मे को कैसे छोड़ सकता हूँ? विचारणीय हैं कि जिसका अन्त करण इतना दयालु हो क्या वह किसी की प्राण हत्या का आदेश दे सकता है ? धर्म शास्त्रों के ज्ञाता मुसलमान मौलवी स्पष्ट कहते हैं कि मुस्लिम धर्म ग्रन्थों में कहीं भी जीव हिंसा (कुर्बानी) के लिये नहीं कहा गया है। अबुलअला केवल अन्नाहार करता था और दूध तक नहीं पीता था। कारण, वह मानता था कि माता के स्तन से बच्चे के हिस्से का दूध भी दुह लिया जाता है । इसलिये वह पाप मानता था। जहां तक बनता था, वह आहार भी नहीं करता था। उसने मधु का भो त्याग कर दिया था। अण्डा भी नहीं खाता था। आहार और वस्त्र की दृष्टि से वह सन्यासियों की भांति रहता था। पांव में लकड़ो को पावड़ी पहनता था। कारण, पशु को मारना और उसका चमड़ा काम में लाना पाप है। मुस्लिम संतों में राबिया गजब के अहिंसा प्रेमी थे। प्राणी मात्र के प्रति उनके हृदय में आर ममता थी। अल्लाह की इबादत और बंदगी में कोई खलल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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