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________________ इस्लाम धर्म में अहिंसा का स्वरूप अरब की मरूभूमि इतिहास में प्रसिद्ध है । कारण कि इस मरूस्थली में एक ऐसे महपुरुष ने जन्म लिया जिसे करोड़ों नर-नारी अवतार मानकर पूजते हैं, जिसके एक-एक शब्द पर उसके अनुयायी प्राणोत्सर्ग करने को तत्पर हैं, वे महापुरूष हैं - पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहिब । इन्होंने [ ५७० - ६३२ ] अरब के उन असभ्य लोगों को, जिन्हें इनसे पूर्वं कोई भी वश में करने में समर्थन हुआ था, बत्तीस वर्ष तक अपने कठोर नियंत्रण में रखा। इनसे पूर्व अरब में छोटे-छोटे राज्य आपसी कलह में लगे रहते थे, नाना देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे, उन्हें प्रसन्न करने के लिये अनेक विध विधि-विधानों और अनुष्ठानों का प्रयोग करते थे । मुहम्मद साहब ने एक निराकार ईश्वर [ अल्लाह ] की पूजा का प्रचार किया। बालिका वध, द्यत तथा मदरा सेवन आदि बुराइयों तथा हानिकर रूढ़ियों का खण्डन किया । यद्यपि प्रारम्भ में उनके विचारों का विरोध हुआ किन्तु शीघ्र ही सारा अरब उनका अनुयायी हो गया । उनके उपदेशों ने अरब में नवजीवन का संचार किया । हजरत मुहम्मद ने जिस नये धर्म का प्रारम्भ किया उसे ही इस्लाम के नाम से जाना जाता । मुहम्मद उसका रसूल है । प्रत्येक मुसलमान के लिये जिस प्रकार अल्लाह में विश्वास रखना आवश्यक है, उसी प्रकार इस्लाम में इमान लाना भी अनिवार्य है । जो ज्ञान ईश्वर ने अपने रसूल मुहम्मद द्वारा प्रदान किया उसे कुरान कहते हैं, जिसके प्रारम्भ में ही खुदा को "बिस्मि - ल्लाह रहीमान्नुर रहीम" अर्थात् उदार और दयावान कहकर सम्बोधित किया गया है । इस्लाम धर्म के सिद्धांतों की जानकारी मुख्यतः चार ग्रंथों से होती है - कुरान सुन्ना, इज्म और किअस । जिनमें ईश्वर में विश्वास करने, धर्म पथ प्रदर्शकों के विचारों पर आस्था रखने, गरीबों व दुर्बलों पर दयाभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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