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________________ ::( joj ) यजुर्वेद में कहा है "हे प्रभो जो हमारी हिंसा करता है उसका आप नाश करें और उसके प्रतिकार में हम भी उसकी हिंसा करते हैं । " "जो असुर दुष्ट लोग धोखा देने के लिये कई तरह के रूप बनाकर झूठे साधू-संत बनकर हमारे धन-पदार्थ को खाते उड़ाते हैं जो हम पर बाहर व भीतर से आक्रमण करते हैं ऐसे स्वदेशी या परदेशी दुष्टों को हे वीर तू दूर भगा दे । " "जो दुष्ट - हमें लूटता है हमसे द्व ेष करता है जो हमारी निन्दा करता है व जो हमारी हिंसा करना चाहता है उस दुष्ट को मारकर भस्म करो । १ इसी प्रकार अथर्ववेद में भी लिखा है कि "जो दुष्ट हम भले पुरूषों पर आक्रमण करते हैं, वे नीचे गिरें और नीचे हों। उन शत्रुओं का मैं विज्ञान की सहायता से नाश करता हूँ और अपने साथियों की मदद कर उन्हें ऊपर उठाता हूँ ।"२ अतः आतताइयों अथवा दुष्टों को दंड देना धर्म है क्योंकि इससे अहिंसा के व्रत को बल मिलता है। गुप्तकाल की कठोर दंड व्यवस्था इस बात का प्रमाण है कि उस काल में लोग पाप से बचकर अधिक सन्मार्गोन्मुख होते थे । यदि दंडनीयों को उचित दंड न दिया जाये तो संसार में इतनी खलबली मच जायेगी और लूट खसोट होने लगेगी कि सर्व साधारण का तो जीना ही दूभर हो जायेगा । कान में भी आत्मरक्षा के लिये यदि किसी का वध कर १. धूरसि धर्व धर्वन्तं घव तं योस्मान् धर्वति तं धर्व यं वयं धर्वामः । १ / ८ रूपाणि प्रतिमुञ्चमाना असुराः संत स्वधया चरन्ति । 2 परापुरो निपुरो से भरन्त्यग्निष्टाँल्लोकात प्रणुद्रात्यस्मात् ॥ २/३० योऽथमभ्य मरातीयाद्यश्च नो द्व ेषते जनः निन्दाद्योऽअस्मान् धिप्साच्च सर्व तं भस्मसा कुरू ।। ११/८० २. नीचैः पद्यन्तामधरे भवन्तु ये नः सूरि मधवानं पृतन्यान् । क्षिणामि ब्रह्मणावित्रान्नयामि स्वानहम | काण्ड ३, अनु० ४, सूत्र १९ मंत्र ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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