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________________ ( २४ ) भय लग रहा है कि कहीं यह आकर मुहे कुचल न दे, प्राण रक्षा के लिये जल्दी-जल्दी भाग रहा हूँ, कहीं ऐसा न हो कि मैं सुख से दुःख में पड़ जाऊँ। व्यास जी कहते हैं, हे कीट तुम्हें सुख है कहाँ ? मेरी समझ में तो तुम्हारा मर जाना ही तुम्हारे लिये सुख है क्योंकि तुम तो अधम कीट योनि में पड़े हो । तुम्हें शब्द, स्पर्श, रस, गंध तथा अनेकों भोगों का भोग नही होता तुम जोकर क्या करोगे ? देखिये कोट क्या जवाब देता है सर्वत्र निरतो जीव इतश्चापि सुखं मम् । चिन्तयामि महाप्राज्ञ तस्मादिच्छामि जीवितुम ॥ अर्थात् जीव सभी योनियों में सुख का अनुभव करते हैं । मुझे भी इस योनि में सुख मिलता है और यही सोचकर जीवित रहना चाहता हूँ। ____ सत्य ही तो है, प्राणियों के लिये मृत्यु बड़ी दुखदायिनी होती है। अपना जीवन सबको बड़ा ही दुर्लभ लगता है चाहे पंचेन्द्रिय जीव हो अथवा तिर्यच योनि के अधम कीट आदि । हर योनि में शरीर के अनुसार सारे विषय उपलब्ध होते हैं । हम यह नहीं कह सकते कि अवम योनि के जोवों को सुख नहीं है मनुष्यों और स्थावर प्राणियों के भोग अलग-अलग हैं । अत. निर्दोष मूक पशुओं का संहार करना निन्दनीय ही है । शास्त्रों में तो ऐसे-ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने पशु-पक्षियों की रक्षा के लिये अपने प्राणों का मोह छोड़ दिया। बाज के डर से भागा हुआ कबूतर महा शिबी की शरण में आता हैं । बाज के अनुनय विनय करने पर भी राजा शरणागत का त्याग नहीं करते। कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिये कबूतर के बराबर अपने शरीर का माँस तौलकर देने को तैयार हो जाते हैं। ___ कहाँ एक मूक पक्षी के प्राणों की रक्षा के स्वयं के प्राणों की बाजी लगा देने वाले महाराज शिबी और कहाँ जिव्हेन्द्रिय की लोलुपता के लिये पशुबलि देने वाले ये नराधम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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