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________________ ( १४६ ) कि जानवरों में जो जीवन है वह भी प्रभु की देन है, कि इस संसार में सभी प्रकार का जीवन ईश्वरीय है और इसलिये सभी पशु- पक्षी वास्तव में हमारे बन्धु हैं । हमें अपने स्वाद की खातिर उनके प्राण लेने का कोई अधिकार नहीं है, कोई अधिकार नहीं है उन्हें अपार यातना और कष्ट पहुँचाने का |............... रेवरेण्ड चार्ल्स डब्ल्यू लेड बीटर । २. “मेरे दोस्तों ! अपने शरीर को पाप पूर्ण के द्वारा नापाक या गंदा मत करो। हमारे पास अनाज है, सेव, अंगूर आदि फलों से लदे वृक्ष हैं । मिठास और सुगन्ध से परिपूर्ण कन्द-मूल तथा सब्जियां हैं, जो अग्नि पर पकाई जा सकती हैं। दूध तथा खुशबूदार शहद की भी कमी नहीं है । ऐसे पवित्र और निर्दोष आहार से धरती भरपूर है । पायथागोरस सुबह के खाने में रोटी और शहद तथा शाम को कच्ची तथा पकाई हुई सब्जियां लेता था । इएम्बेलिनस, पायथागोरस की जीवनी में लिखता है कि वह मछुओं को पैसे देकर पकड़ी हुई मछलियाँ वापस समुद्र में छुड़वा देता था । वह जंगली रीछों को सहलाता था । वह मक्का और अनाज पर गुजारा करता था और पशुओं के वध तथा शराब से नफरत करता था । पायथागोरस के अनुसार निरामिष अथया शाकाहारी भोजन मनुष्य में शांति पैदा करता है तथा वासनापूर्ण निम्न वृत्तियों को नहीं भड़काता ।" "कोई ऐसी चीज न खाओ जिसमें रक्त मिला हो और न ही किसी जीव की हिंसा करो। जो दूसरों की जिन्दगी की कद्र नहीं करता वह खुद भी जिन्दा रहने का हकदार नहीं । प्रकृति नहीं चाहती कि एक जीव दूसरे का घात करे । एक समय आयेगा जब मनुष्य पशुओं के वध को उसी प्रकार दुष्ट कर्म और हत्या समझेगा जिस प्रकार कि आज मनुष्य को मारने को समझा जाता है । " ...........लिओनार्डों द विन्सी । 'पायथागोरस | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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