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प्राप्त करने के लिये बीस लाख टन वनस्पति जन्य प्रोटीन उन पशुओं को खिलाना पड़ता है । सात किलो अनाज की बर्बादी पर एक किलो माँस पैदा होता है। गेहूँ या चावल के रूप में प्रोटीन की एक ईकाई उत्पन्न करने के लिये ऊर्जा की दो से दस ईकाइयां खर्च होती हैं जबकि बीफ मटन के माँस के रूप में उतना ही ( एक ईकाई ) प्रोटीन उत्पन्न करने के लिये लगभग १० से ७८ ईकाई ऊर्जा नष्ट हो जाती है । ऊर्जा के गम्भीर संकटकाल में ऊर्जा की इस प्रकार बर्बादी करना मूर्खता नहीं तो और क्या है ?
कुछ लोग माँसाहार को उपयुक्त ठहराने के लिये देश कारण की आड़ लेते हैं। तर्क देते हैं कि हमारे देश में माँसाहार न करें तो हम जी ही नहीं सकते । जबकि यह पूर्णतया असत्य है । यूरोप में हजारों लोगों ने माँसाहार का पूर्णतया त्यागकर शाकाहार का सेवन प्रारम्भ किया है तो क्या वे जी नहीं रहे ? बंगाल के लोगों का मुख्य भोजन माँस-मछली और भात है वहां विधवा के लिये मांस-मछली भक्षण पर प्रतिबन्ध है तो क्या उनका जीवन नहीं रहता ? सिंध में जो सिंधी वैष्णव हो जाते हैं वे मछली, पल्ला, गोश्त कुछ नहीं खाते तो क्या वे मर जाते हैं ?
सत्य तो यह है कि रसनेन्द्रिय की लोलुपता जब छूटती नहीं तो अपने कुतर्कों का औचित्य सिद्ध करने के लिये कुयुक्तियाँ लड़ाई जाती हैं। तर्क दिये जाते हैं कि माँसाहार बल व वीरता को बढ़ाता है । इस तर्क को निराधार सिद्ध करने के लिये यहाँ भारत सरकार की खोज "शाकाहार सर्वश्रेष्ठ आहार है” का पौष्टिक तत्व वाला तुलनात्मक चार्ट भारत सरकार द्वारा प्रकाशित हैल्थ बुलेटिन नं. २३ देना उपयुक्त होगा ।
एक समय विदेश में एक स्कूल के छात्रों को दो भागों में विभाजित कर यह परीक्षण किया गया कि माँसाहारी और फलाहरी में से किसकी कार्यक्षमता अधिक है ? परिणाम आया कि माँसाहारी से फलाहरी की क्षमता अधिक है । इसी कारण यूरोप, अमेरिका में अनेकों वेजीटेरियन सोसायटियाँ स्थापित होती जा रही है और वे पुस्तकों एवं पत्र- त्र-पत्रिकाओं द्वारा शाकाहार
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