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संस्था के संस्थापक श्री काशीनाथजी सराक ने मुझे पुस्तकं लिखने की प्रेरणा दी क्योंकि उनकी हार्दिक भावना है कि संस्था से समय-समय पर जनोपयोगी सामग्री प्रकाशिक होती रहे ।
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पूज्य पिता श्री खजानचीलालजी का मुझ पर पूर्ण आशीर्वाद है । यथासमय वे मुझे प्रोत्साहित करते रहते हैं मेरी आदरणीय चाचाजी श्रीमती शीलावतीजी एवं समस्त पारिवारिक जन मेरे कार्य से हार्दिक प्रसन्न है ।
अनन्त चतुर्दशी
सम्वत् २०५७
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प्रस्तुत पुस्तक में जिन विद्वानों के साहित्य से मुझे असीम सहायता प्राप्त हुई, उनकी मैं हार्दिक आभारी हूँ । आदरणीय श्री नेमीचन्दजी जैन ( गोदवाले) के प्रति भी आभारी हूँ जिन्होंने अपने पुस्तकालय महावीर जिनालय में पुस्तकें उपलब्ध कराई ।
सन् १९९४ धर्म सम्वत् ७२
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-नीना जैन
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