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________________ ( १११ ) रही है । जीवन के व्यवहार से इसका कोई सम्बन्ध नहीं रह गया है। "दया धर्म का मूल है" अथवा "अहिंसा परमो धर्म" जैसे महामंत्रों का उच्चनाद से उद्घोष करते हैं लेकिन अपने वैयक्तिक जीवन को अहिंसा को पवित्र भावनाओं से अछूता ही रखते हैं। जबकि अहिंसा को परम धर्म कहने के बजाय नित्य धर्म कहना अधिक उपयुक्त होगा। यद्यपि यह असत्य नहीं कि अहिंसा परम धर्म है किन्तु यदि उसे जीवन का अंग न बनाया जाये तो उसकी महानता का क्या अर्थ है ? भगवान महावीर ने जहां अहिंसा को परम धर्म कहा था वहीं उसे नित्य धर्म भी बनाकर दिखा दिया था इसोलिये वे जगत में क्रांति का ध्वज लहरा पाये और आत्मा से महात्मा तथा महात्मा से ऊपर उठकर परमात्मा स्वरूप तक हो गये। आज की विकट परिस्थितियों में परित्राण का क्या उपाय हो सकता है ? नि:सन्देह आज को मानवता के कल्याण का एक मात्र उपाय अहिंसा ही है। मांसाहार के प्रति जैन दृष्टिकोण : यदि इस विषय पर मैं तुरन्त ऐसा ही कह दूं कि जैन-धर्म में माँसाहार का पूर्णतया निषेध है और जैनों ने कभी मांसाहार किया ही नहीं तो मुझ पर साम्प्रदायिकता का लांछन लगना स्वाभाविक है। अत: मैं चाहूँगी कि इस विषय पर सूक्ष्म एवं गहन दृष्टि से विचार किया जाये । जैन शास्त्रों में स्थल-स्थल पर हिंसा निषेध के साथ-साथ मांसाहार का भी निषेध किया गया है। प्रमाणस्वरूप कुछ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं- “यदि सच्चा साधू बनना है तो मद्य, मांस से घृणा करे, किसी से ईर्ष्या न करे, बारम्बार पौष्टिक भोजन का परित्याग और कायोत्सर्ग करता रहे तथा स्वाध्याय योग में प्रयत्नवान बने ।"१ १, दशवैकालिक सूत्र- चूलिका २, गाथा ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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