________________
( १०९ ) दी है। किसी दूसरे धर्म ने अहिंसा की मर्यादा यहाँ तक नहीं पहुँचाई । आज संसार को अहिंसा की आवश्यकता महसूस हो रही है, क्योंकि उसने हिंसा के नग्न तांडव को देखा है और आम लोग डर रहे हैं क्योंकि हिंसा के साधन आज इतने बढ़ते जा रहे हैं और इतने उग्र होते जा रहे हैं कि युद्ध में किसी के जीतने या हारने की बात इतने महत्व की नहीं होती, जितनी किसी देश या जाति के सभी लोगों को केवल नि:सहाय बना देने की ही नहीं पर जीवन के मामूली सामान से वंचित कर देने को होती है।" इसीलिये वे कहते हैंजिन्होंने अहिंसा के मर्म को समझा वे ही इस अंधकार में कोई रास्ता निकाल सकते हैं।
पाश्चात्य इतिहासकार स्मिथ लिखते हैं-"जैन आचार-शास्त्र सब अवस्था वाले व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। वे चाहे नरेश, योद्धा, व्यापारी, शिल्पकार अथवा कृषक हैं, वह स्त्री-पुरुष की प्रत्येक अवस्था के लिये उपयोगी हैं । जितनी अधिक दयालुता से बन सके अपना कर्त्तव्य पालन करो। सूत्र रूप में वह जैन-धर्म का मुख्य सिद्धांत है।"१
अधिक क्या, चन्द महीनों पूर्व थाइलैण्ड का ही उदाहरण लीजिये, वहाँ सर्वसम्मति से चुने गये प्रधानमन्त्री का अमेरिकी पिट्ठओं द्वारा बहिष्कार किये जाने पर पाँच पार्टियों ने मिलकर सेना के प्रमुख जनरल सुचिंदा को देश का विना निर्वाचित प्रधानमन्त्री घोषित कर दिया। लेकिन ऐसे प्रधानमन्त्री को उन पाँच पार्टियों के अतिरिक्त किसी ने भी स्वोकार न किया । अत: देश में व्यापक स्तर पर प्रदर्शन होने लगे। केवल इतना ही नहीं भूतपूर्व सांसद चालक वारचाक ने आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। पूरे देश में उस समय एक हलचल सी पैदा हो गई जब प्लांग धर्म राजनीतिक पार्टी के नेता मेजर जनरल चमलौंग श्री मुआंग ने वारचाक के साथ बैठने का फैसला किया। दूसरे दिन अखबारों की सुर्खियों में था-“एक और गाँधी द्वारा अनशन ।"
१. भारत का इतिहास-विन्सेन्ट-ए-स्मिथ पृ. ५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org