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________________ ( १०१ ) स्थूल एवं सूक्ष्म जीवों को हिंसा न करें लेकिन इसके कुछ अपवाद मार्ग भी | जैसे - भिक्षु के लिये हरी वनस्पति के स्पर्श का निषेष है । यह तो हुआ भिक्षु का उत्सर्ग मार्ग किन्तु इसका अपवाद मार्ग इस प्रकार है 1 "एक भिक्षु जो किसी अन्य मार्ग के न होने पर किसी पर्वत आदि के विषम पथ से जा रहा है । यदि कदाचित् वह स्खलित होने लगे तो स्वयं को गिरने से बचाने के लिये झाड़, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, घास, बूट, हरित आदि को पकड़कर उस विषम रास्ते को पार करे ।" १ यहाँ प्रत्यक्ष में देखा जाये तो भिक्षु जब अपवाद मार्ग ग्रहण करके हरी वनस्पति का स्पर्श करता है तो उसमें हिंसा होती है लेकिन सूक्ष्मता से विचार करने पर विदित होता है कि जो हिंसा हुई है वह हिंसा के लिये नहीं प्रत्युत अहिंसा के लिये ही हुई है । गिर जाने पर अंग-भंग हो सकता था फिर आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान का संकल्प - विकल्प आ सकता था अथवा गिरते हुए अन्य जीवों की हिंसा हो सकती थी । अतः भविष्य में होने वाली हिंसा की लम्बी श्रंखला से बचने के लिए भिक्षु ने जो अपवाद मार्ग ग्रहण किया मूलत: वह अहिंसा के लिए ही किया । भिक्षु के लिए गृहस्थ के घर में मल-मूत्र त्याग करने का निषेध है । विशेष परिस्थिति पैदा होने पर यहाँ भी इस प्रकार से छूट है— “अव्वल तो मल-मूत्र की बाधापूर्वक साध गोचरी (भिक्षा) के लिए जावे ही न । यदि वहाँ जाने पर बाधा हो जाए, तब प्रासुक मल-मूत्र का स्थान जानकर और गृहस्थ की आज्ञा लेकर ही मल-मूत्र का त्याग करे ।"२ मल-मूत्र का बलात निरोध करना स्वास्थ्य और संयम दोनों ही दृष्टियों से वर्जित है । मूत्रावरोध से नेत्र रोग और पुरिषावरोध से अनेक रोग तथा जीवोपघात आदि होते हैं । १. आचारांग सूत्रम - श्रुत स्कन्द २, अध्ययन १२, उद्देश २, श्लोक ७४७ २. दश्वैकालिक सूत्र - अध्याय ५, गाथा १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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