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जिन पडिमा जिन सारीखी, सिद्धान्ते भाखी । नि:पा सहुसारिखा, थापना तिम दाखी ।४। त्रणकाल त्रिभुवन मांही, करे ते पूजन नेह । दरिशन केरुं बीज छे, एहमां नहिं संदेह ।५। ज्ञान विमल तेहने, होय सदा सुप्रसन्न । एहीज जीवित फल जाणीजे, तेहीज भविजनधन्न ।६।
-श्री ज्ञानविमलसुरिः
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