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२४ तू भी सो जाता
जो अपने सत्कर्म के अहंकार में दूसरों की अवज्ञा करता है वह वास्तव में दुहरी मूर्खता करता है-अपने सत्कर्म को तो नष्ट करता ही है, पर दूसरों के दोष देखने का पाप भी करता है। इसीलिए ज्ञानीजनों ने बार-बार यह कहा हैअन्न जणं खिसइ बाल पन्न
-सूत्रकृतांग १।१३।१४ अपने ज्ञान के अहंकार में दूसरों की अवज्ञा करना मूर्ख आदमी का काम है । बुद्धिमान किसी की भी निन्दा नहीं करे-नो तुच्छ ए (सूत्रकृतांग) किसी के दोषों पर नजर नहीं टिकाएन सिया तोत गवेसए
---उत्तरा० ११४० यदि तुम्हारे पास आँख है, देखने की शक्ति है, तो
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