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२२ असली सोना
उपनिषद् का एक वाक्य हैअमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तन
-बृहदारण्यक २।४।३ धन से अमरता की आशा नहीं की जा सकती।
जो धन जड़ है, नश्वर है, वह हमेशा जड़ता ही पैदा करता है, नश्वर खेल रचाता रहता है। निर्ग्रन्थ महर्षियों की भाषा में वह-भार है-सव्वे आभरणा भारा, और बंधन है । धन तिजोरी में पड़ा रहता है, किंतु उसका भार मनुष्य की छाती पर रहता है । पैसा भले ही बैंक में पड़ा हो, या जमीन में गड़ा हो, अथवा आलमारी में छिपा हो, वह हमेशा मनुष्य को बाँधे रखता है।
धन का भार हलका तभी हो सकता है, जब उस धन की नश्वरता को समझ लिया जाय । वह बंधन तभी छूट सकता है जब उसकी ममता मन से हट जाये और
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