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प्रतिध्वनि
नष्ट नहीं होता, इसी प्रकार जो राजा विशाल वृक्ष के समान राष्ट्र का नीति एवं धर्म से प्रशासन करता है, वह राज्य का आनन्द भी लेता है और अपने राज्य को सुरक्षित रखता हुआ उसका विस्तार भी करता जाता है।
-(जातक १८।५२८) इन्हीं विचारों की प्रतिध्वनि गूंज रही है- यूनान के विश्वविजेता सिकन्दर महान् के इस अनुभव में
एकबार किसी ने सिकन्दर से पूछा-आपने पश्चिम से पूर्व तक फैले हुए इतने सारे देशों पर मुट्ठी भर सैनिकों की सहायता से विजय कैसे प्राप्त करली ? आपसे पहले भी बहुत से बादशाह हो गए हैं जो सम्पति में, बल में, सेना में हर तरह से आपसे बढ़चढ़कर थे मगर उन्होंने कभी भी इतनी महान विजय प्राप्त नहीं
की ?"
सिकन्दर महान् मुस्करा कर बोले- "इस में कोई बड़ा रहस्य नहीं है । मैंने जब कभी किसी देश को जीता तो अपने तीन सिद्धान्तों का बराबर ध्यान रखा, और उन्हीं सिद्धान्तों ने मुझे विजय-पर-विजय का द्वार खोल दिया, विजित प्रजा का प्यार और विश्वास भी दिया।"
वे सिद्धान्त कौन से हैं ?-प्रश्नकर्ता ने पूछा। सिकन्दर ने उत्तर दिया
१. मैंने विजित देश की प्रजा पर कभी जुल्म नहीं किया, हमेशा उसके जान-माल की रक्षा का ध्यान रखा।
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