________________
जिज्ञासुओं को भी वे रुचिकर लगीं। इससे मेरा उत्साह बढ़ता गया और कहानियाँ लिखता चला गया। ___ मेरे साहित्यसर्जन की मूल प्रेरणा श्रद्धय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म० सा० का वरद आशीर्वाद ही रहा है। उनकी जीवंत प्रेरणाएँ यदि मुझे न मिल पातीं, तो संभव है मैं साहित्य जगत में आज भी क-ख से आगे नहीं बढ़ पाता । अतः यह जो कुछ ही बन पड़ा है, वह तो मैं अनन्य श्रद्धा के साथ उन्हीं का वरदान मानता हूँ।
मेरे साहित्यिक कार्यों में परमस्नेही श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' का भी जो सहयोग रहा है, मैं उसे विस्तृत नहीं कर सकता । मेरी अनेक पुस्तकों का सुन्दर सम्पादन उन्होंने किया है और बड़े स्नेह के साथ । प्रस्तुत 'प्रतिध्वनि' में भी उनकी लेखिनी का रस-स्पर्श हुआ है और इससे कहानियों व रूपकों में कुछ वैशिष्ट्य आया है।
मेरे अन्य साहित्यिक सहयोगियों को भी मैं कैसे विस्मृत कर सकता हूँ ? मैं जो कुछ लिखता हूँ, पढ़ता हूं वह सब आखिर किसी सहयोग के बिना कैसे सम्भव हो पाता ? आशा है मेरे साहित्य के पाठक भी मुझे इसीप्रकार सहयोग कर साहित्य सर्जना के मेरे उत्साह को बढ़ाते रहेंगे।
श्रीमेघजी थोभण जैनधर्मस्थानक १७० कांदावाड़ी, बम्बई-४ आषाढीपूर्णिमा सं २०२८
-देवेन्द्र मुनि
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org