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१२ चीनी की पुड़िया
संस्कृत के पद्मानंद महाकाव्य में एक सूक्ति है"भुजंगमानां गरलप्रसंगान्नापेयतां यांति महासरांसि" __महासरोवर में अजगर और विशालकाय सांप निरन्तर जहर उगलते रहते हैं, फिर भी सरोवर का पानी उनसे कभी दूषित नहीं हो सकता। इसी प्रकार सत्पुरुष का जीवन जो कि सद्गुणों की साधना में महासरोवर की भाँति विशाल बन गया है, निन्दक व दुष्टजनों के निंदाप्रवादों से कभी लांछित नहीं हो सकता।
निंदक का स्वभाव ही निंदाप्रिय होता है, उसकी जीभ को विष वमन करने की आदत हो जाती है। किंतु गुणी जन उस पर क्रोध नहीं करते। उनका तो आदर्श होता हैबुच्चमाणो न संजले
-सूत्र कृतांग ॥९॥३१ अर्थात् क्रोध युक्त दुर्वचन कहने वाले पर भी क्रोध
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