________________
अपनी-अपनी कल्पना :
अपना-अपना ईश्वर
ईश्वर क्या है ? और क्या करता है ? यह प्रश्न आज भी उतना ही विकट है जितना मानव के चितन काल की प्रथम वेला में था ! मानव की ईश्वर सम्वन्धी धारणाओं और मान्यताओं पर विचार करने पर कभी कभी आश्चर्य होता है, कभी कभी हंसी आती है, और कभी-कभी खेद होता है।
लगता है मानव के मन में जिस समय जैसा विचारविम्ब बना उसने वैसा ही प्रतिबिम्ब घड़ लिया ईश्वर के रूप में। जिसकी जैसी भावना रही, उसने वैसा ही भगवान तैयार कर लिया।
देखिए : विभिन्न धर्म परम्पराओं के ईश्वर का रूप । ईश्वर का एक रूप है---पुरन्दर ! अर्थात् गाँवों को उजाड़ने वाला । एक रूप है बलिप्रिय-गाय, घोड़ा और मनुष्य
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org